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खण्ड १ | जीवन ज्योति
जयपुर में आचार्य पद समारोह आषाढ़ कृष्णा ६, सं० २०३६ को जयपुर में बड़े ही समारोहपूर्वक पू० उदयसागरजी म. सा० तथा पू० कान्तिसागरजी म. सा० को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया।
पू० उदयसागरजी म. सा० का चातुर्मास तो जयपुर में था अतः वे वहीं विराजे । किन्तु पु० कान्तिसागरजी म. सा. ने अपने शिष्य मंडल के साथ जोधपुर की ओर विहार किया। पू० शशिप्रभाजी ने भी जोधपुर की ओर प्रस्थान किया।
___जोधपुर चातुर्मास : सं० २०३६ उग्र विहार करते हुए सभी रातानाड़ा जोधपुर पधारे । जोधपुर संघ ने रातानाड़ा से जोधपुर शहर तक विराट जुलूस के साथ धूम-धाम से आप सबका नगर प्रवेश कराया।
___ चातुर्मास में न्यानि नौहरे में व्याख्यान पूज्य आचार्यश्री ही फरमाते थे। महामनीषी पू० प्रबर मणिप्रभसागरजी म० सा० पूज्या गुरुवर्याजी से आचारांग की वाचना लेते थे और अन्य भी कई प्रकार की शास्त्रचर्चाएं करते थे।
गुरुवर्याजी मधुर ओजस्वी वाणी में श्रीचन्द केवली रास फरमाती थीं। श्री मुदितप्रज्ञाश्रीजी ने इस चातुर्मास में मासक्षमण तप की आराधना की।
जोधपुर में प्रवर्तिनी पद समारोह : सं. २०३६ चातुर्मास के प्रारम्भ से ही प्रवर्तिनी पद समारोह की तैयारियां शुरू हो गयी थीं। समारोह की संपूर्ण व्यवस्था निमाज की हवेली में थी। अध्यक्षता तत्कालीन न्यायाधीश श्रीमान गुमानमलजी सा. लोढा ने की। आचार्य प्रवर श्रद्धय गुरुदेव ने पू. गुरुवर्याश्री को प्रवर्तिनी पद की क्रिया बड़े सुव्यवस्थित ढंग से करवाई । पू. गुरुदेव ने प्रवर्तिनी पद से सम्बन्धित अधिकारों, कर्तव्यों और गरिमा प्रकट करते हुए सारगर्भित विवेचन किया और शुभकामना प्रकट की कि प्रवर्तिनीजी इस पद की गरिमा बढ़ाती हुई चिरकाल तक जिनशासन की सेवा करती रहेंगी।
इसी अवसर पर गुरुवर्याधी द्वारा अनूदित कल्पसूत्र का विमोचन श्री लोढ़ाजी के करकमलों द्वारा हुआ और यह ग्रन्थ पू. गुरुवर्याश्री के पाणिपद्मों में अर्पित किया गया।
गुरुवर्याश्री के संसारपक्षीय भ्राता श्रीमान केसरीचन्दजी लूणिया और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रेखाजी ने पूज्या गुरुवर्या को कम्बली ओढ़ाकर सम्मानित किया, तत्पश्चात अन्य लोगों ने भी यथाशक्ति कम्बली ओढ़ाई।
समारोह हर्षोत्साहपूर्वक सम्पन्न हुआ। आचार्यश्री अपने शिष्य मंडल सहित नाकोड़ाजी की ओर विहार कर गये।।
हम लोगों ने पू. धर्मश्रीजी म. सा. व रतिश्रीजी म. सा. के अत्यधिक आग्रह से फलोदी की ओर विहार किया। कारण यह था कि पूज्यवर्याओं के परिवारीजनों ने महापूजन सहित अष्टान्हिका महोत्सव, स्वाभिवात्सल्य का आयोजन किया था। यथासमय हम वहाँ पहुँचे। सभी कार्यक्रम सानन्द सम्पन्न हुए। हम लोग एक माह तक वहाँ रुके।
दादा गुरुदेव जिनकुशल की सप्तम शताब्दी : सिवाणा में : सं. २०४०
सिवाणा में ही दादा गुरुदेवश्री जिनकुशलसूरि का सप्तम जन्म शताब्दी समारोह मनाने का निर्णय हो चुका था। साथ ही अंजनशलाका सहित प्रभु गुरुदेव का प्रतिष्ठा समारोह भी विराट आयोजन
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