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खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनायें
है । प्रमाद और आलस्य तो उनसे कोसों दूर रहता है, क्योंकि वे हर समय पठन-पाठन और लेखन कार्य 'तल्लीन रहती हैं । इनका प्रमुख गुण यह है कि स्वकल्याण और विकास का ध्यान रखने के साथ - साथ आप जनकल्याण और समाजोत्थान की भावना से भी ओत-प्रोत हैं । अभिनन्दन के अवसर पर मेरा शत शत वन्दन ।
O श्रीमती ताराकुमारी झाड़चूर
शब्दों की एक सीमा होती है उनमें इस असीम अनुपम ज्योतिर्मय व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करना सम्भव नहीं है, तथापि विचारों की तरंगों को रोक नहीं पा रही हूँ। मैं करीब ३८ वर्ष पूर्व जयपुर के झाड़चुर परिवार में आई थी तब पूज्य गुरुवर्या के अलौकिक व्यक्तित्व का प्रभाव पड़ा था और शनैःशनैः वह गूढ़ होता गया । वे अत्यन्त सरल एवं करुणहृदयी हैं । इतनी बुद्धिजीवी होकर भी जरा सा भी मान नहीं है, न पद की लालसा है और न ही नाम की आकांक्षा । ऐसी गुरुवर्या के दर्शन एवं स्पर्श से जिस सुख की अनुभूति होती है सम्भवतः उसे ही परमानन्द कहा गया है । मुझे शुरू से ही पुराने स्तवन अच्छे लगते हैं क्योंकि उनमें भावाभिव्यक्ति बहुत ही उत्कृष्ट होती है। गुरुवर्या के कुछ स्तवन भले ही वे फिल्मी गानों की तर्ज पर ही क्यों न हो, अत्यन्त सारगर्भित हैं । गुरुदेव के एक भजन की आखरी पंक्ति में पूज्य गुरुवर्या ने कहां है “दो ज्ञानमय उपयोग ऐसा आत्म को जाने, " कितना आध्यात्मिक भाव एवं कितना सरल कि साधारण व्यक्ति के भी समझ में आ जाए ।
जयपुर श्री संघ पर गुरुवर्याश्री की विशेष कृपा रही है । जब भी प्रमाद में फँस कर धर्म कृत्य छोड़ देते हैं तो पुनः जागृत करती रहती है । कितना ख्याल एवं कितनी आत्मीयता है । ऐसी महान विभूति के चरणों में त्रिकाल वन्दन करते हुए पूज्य गुरुवर्या के आरोग्य तथा दीर्घ जीवन की गुरुदेव से मंगल कामना करती हूँ ।
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[] श्री जोगेश्वरनाथजी संड
धर्म प्रवर्तिनी पूज्यवर्या प्रवर्तिनी सज्जन श्रीजी म० साहब, आगम ज्योति के इस अभिनन्दन समारोह के लिये मेरी हार्दिक शुभ-कामनायें तथा ऐसी महाप्राण साध्वीजी के सुस्वस्थ होने तथा शतायु होने की मंगल कामना अर्पित करता हूँ । शत-शत
नमन ।
श्रीमती रत्ना ओसवाल
( सहमंत्राणी : अखिल भारतीय महिला समिति, राजनांदगाँव म०प्र० )
अपने आचार-विचार की समतल पृष्ठभूमि पर व्यक्तित्व की परिभाषा बन उभरता है, वही संत है, वही साध्वी है। परम पूज्य प्रवर्तिनी साध्वी श्री सज्जन श्रीजी का व्यक्तित्व आचार-विचार की समन्विति से मंडित है । इस मंगल बेला पर उन्हें
शत-शत मेरा वंदन ।
0 श्रीमती भंवरदेवी गोलेच्छा अत्यन्त हर्ष का विषय है कि आगमज्ञा विदुषीवर्या समता मूर्ति सरल स्वभावी सुपुनीत संत महामहिम प्रवर्तिनी श्री सज्जन श्रीजी म० सा० के अभिनन्दन ग्रंथ का प्रवर्तन प्रकाशन होने जा रहा है। वास्तव में यह संत का सम्मान तो है ही उससे अधिक यह उनके कर्मों से जुड़े अन्य सु पुनीतों के सद्ग ुण ग्रहणात्मकता का प्रकाशन भी है । अन्त में मैं इतना ही कहूँगी :
"बंदी गुरुपद पदुम परागा । सुरुचि सुवास सरस अनुरागा ॥ अमिय मूरिमय चूरन चारू । शमन सकल भवरूज परिवारू ॥ गुरुवर्या के चरणों में कोटिशः प्रणाम ।
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