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खण्ड २ : श्रद्धाचन : काव्यञ्जलि
कोट-कोटि वन्दना
-पदमा नूनिया आँखें हैं अनुभवी आपकी
कि बचा कर रखें स्वयं को दर्शाती है जो
भौतिकता के इस समस्त जीवों के प्रति
विकट मोहपाश से स्नेह एवं करुणा का छलकता सागर परिपूर्ण है ये जीवन रस के
और कहती है कि जीवन को करें हर पहलू के संकलन से ।
सादगी से अलंकृत जो जानती हैं
मन करता है मेरा भी प्रतिपल जीवन की वास्तविकता को
सदा रहूँ निकट आपके। और सदैव देती हैं प्रेरणा
तीक्ष्ण बुद्धि व मस्तिष्क आपका सतत् सत्य के मार्ग पर चलने की
भंडार है असीमित ज्ञान का
झरते हैं ज्ञान के पुष्प इच्छा होती है हरपल मेरी
निरन्तर जिससे ! इन्हें नमन करने की।
यदि समेट सकें वाणी की परिपक्वता व मधुरता
एक दो पुष्प भी इनमें से तो देती है यह प्रबल संदेश
अवश्य सफल हो जाये कि क्षण भर भी प्रमाद न करें
यह दुर्लभ मानव जीवन !
ईश्वर से है साथ ही देती है संकेत
एकमात्र कामना मेरी कि जीवन के प्रत्येक क्षण में
करे ऐसी तीक्ष्ण बुद्धि तत्पर रहें कुछ कर जाने को
मुझे भी प्रदान! न खो दें भूल से भी
व्यक्तित्व आपका है मिसाल उस अमूल्य क्षण को
साहस व त्यागमय
जीवन का जो शायद जीवन का मार्ग ही बदल दे
एक उगता सूरज है यह मन करता है हरदम मेरा
अलौकिक आलोक है इन्हें सुनते रहने का।
जिसके चारों ओर। संगति आपकी करती है
जिसे शत-शत आध्यात्मिकता से ओत प्रोत
नमन करने को आज के भटकते युवक वर्ग के
मन करता विचलित हो रहे मानस को
सम्पर्क में आने वाले करती है आगाह
हर इन्सान का २/२
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