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खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ
जन्म हुआ था। अम्बिका देवी के स्वप्नानुसार इनका जन्म नाम अम्बड़ रखा गया था । गच्छनायक जिनपतिसूरि के सदुपदेश से वैराग्यवासित होकर आचार्यश्री के करकमलों से संवत् १२५८ चैत्र बदी दूज खेड़ नगर में शान्तिनाथ भगवान के विधि चैत्यालय में दीक्षा ग्रहण की थी। इनका दीक्षा नाम वीरप्रभ रखा गया था।
जिनपालोपाध्याय का जो शास्त्रार्थ पण्डित मनोदानन्द के साथ हुआ था उस समय वीरप्रभ गणि भी जिनपालोपाध्याय के साथ थे । आचार्य जिनपतिसूरि ने अपने सांध्य बेला के समय वीरप्रभ गणि को आचार्य पद पर स्थापित करने का संकेत किया था। तदनुसार ही संवत् १२७८ माघ सुदी छठ के दिन जालौर नगर में जिनहितोपाध्याय, जिनपालोपाध्याय आदि की उपस्थिति में आचार्य सर्वदेवसूरि ने संघ की सहमति के साथ इनको आचार्य पद पर स्थापित किया था। आचार्य पदारोहण के समय इनका नाम परिवर्तित कर जिनेश्वरसूरि रखा गया था।
संवत् १२८१ में श्री जिनेश्वरसुरि ने ठाकुर अश्वराज और सेठ राल्हा के सहयोग से उज्जयन्त, शत्रुञ्जय और स्तम्भनक आदि प्रमुख तीर्थों की यात्राएँ कीं। खम्भात में वादी यमदण्ड नामक दिगम्बर विद्वान से मिलन एवं वार्तालाप हुआ। खम्भात में आचार्यश्री का प्रवेश महोत्सव प्रसिद्ध महामन्त्री श्री वस्तुपाल ने ही करवाया था। संवत् १२६१ वैशाख सुदी दसवीं के दिन जालौर में अनेक साधु-साध्वी बनाये । जेठ वदी दूज रविवार के दिन विजयदेव को आचार्य पद से अलंकृत किया । संवत् १२९४ में संघहित को उपाध्याय पद दिया। संवत् १२६६ फाल्गुन बदी पंचमी को पालणपुर में प्रबोधमूर्ति को दीक्षा प्रदान की। ज्येष्ठ सुदी दशमी को पालणपुर में ही शान्तिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा करवाई, जिसे पाटण में स्थापित की गई। १२९७ में पालणपुर में अनेकों को दीक्षा प्रदान की। १२६८ वैशाख माह में जालौर में महं० कुलधर ने जिनचैत्य पर स्वर्णमय दण्ड ध्वज का आरोपण किया। संबत् १२९६ प्रथम आश्विन मास की दूज के दिन महामन्त्री कुलधर ने आचार्यश्री से दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के बाद महामन्त्री कुलधर का नाम कुलतिलक मुनि रखा गया था।
संवत् १३०४ वैशाख सुदी चौदस के दिन जिनेश्वरसूरि जी ने विजयवर्द्धन गणि को आचार्य पद प्रदान किया और इनका नाम जिनचन्द्राचार्य रखा। इसी दिन विवेकसमुद्र आदि अनेकों को दीक्षा प्रदान की। संवत् १३०५ आषाढ़ सुदी दसभी के दिन पालणपुर में अनेक तीर्थंकर प्रतिमाओं और नन्दीश्वर पट्ट की प्रतिष्ठा की।
जिनेश्वरसूरिजी ने संवत् १३०६ जेठ सुदी तेरस के दिन श्री मालनगर में अनेक तीर्थंकर प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की।
जैन शासन और खरतरगच्छ की प्रभावना करते हुए आचार्य जिनेश्वर संवत् १३३१ में जालोर पधारे और यह चातुर्मास जालौर में ही किया। चातुर्मास के मध्य में ही शारीरिक अस्वस्थता के कारण अपना अन्तिम समय निकट जानकर अपने करकमलों से ही संघ के समक्ष वाचनाचार्य प्रबोधमूर्ति गणि को संवत् १३३१ आश्विन बदी पंचमी को अपने पद पर स्थापित कर जिनप्रबोधसूरि नामकरण किया
१. इस समय की प्रतिष्ठित दो मूर्तिर्या-घोघा के जिनालय में और दो धातु मूर्तियाँ चिन्तामणि मन्दिर भूमिगृह,
बीकानेर में विद्यमान हैं। और, दो प्रतिमाएँ आषाढ़ सुदी तेरस की प्रतिष्ठित चिन्तामणि मन्दिर भूमिगृह
बीकानेर में विद्यमान हैं। खण्ड ३/३
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