________________
खण्ड ४ : धर्म, दर्शन एवं अध्यात्म-चिन्तन
६६
में प्रतिभा आती है। इस प्रकार यथार्थ दृष्टिकोण जीवन के आदर्शों के साथ परस्पर मैत्रीपूर्ण होना जीवन-निर्माण की दिशा में आवश्यकीय है। सम्बन्ध बनाए रखना, सम्यक् रीति से जीवन
सैद्धान्तिक अपेक्षा से आध्यात्मिक विकास में व्यतीत करना है। राजनैतिक व्यवस्था सम्यक् न सम्यक्त्व महत्वपूर्ण है ही किन्तु व्यावहारिक जीवन होगी तो राष्ट्र में भ्रष्टाचार बढ़ता ही जावेगा, में भी सम्यक्त्व अत्यन्त उपयोगी है। सामाजिक फलस्वरूप राष्ट्र का अनैतिकता के कारण पतन हो क्षेत्र हो या पारिवारिक क्षेत्र हो, राजनैतिक क्षेत्र जायेगा। धार्मिक व नैतिक क्षेत्र में तो स्पष्ट रूप हो या आर्थिक क्षेत्र हो, धार्मिक क्षेत्र हो या नैतिक से ही सम्यक्त्व की छाप दृष्टिगोचर होती है । क्षेत्र हो हर क्षेत्र में सम्यकत्व उपयोगी व महत्व- धार्मिक सिद्धान्तों का व्यावहारिक जीवन में पूर्ण है ; क्योंकि सही दृष्टि सही दिशा की ओर ले उपयोग होना ही सम्यक्त्व है। जीवन को सुव्यवजाती है । फलतः मंजिल तक पहुँचा देती है। स्थित रूप से, सुचारु रूप से प्रतिपादन करने में, गलत राह पर जाने वाला भटक जाता है, सही राह उत्तरोत्तर आत्मिक गुणों के विकास में सम्यक्त्व ही वाला नहीं।
सहायक है।
9 भाषा की मधुरता और शिष्टता में ही व्यक्ति की कुलीनता और सज्जनता छिपी हुई है। भाषा से ही व्यक्ति अपना परिचय दे देता है कि वह किस खानदान से ताल्लुक रखता है। भाषा की शालीनता जहाँ व्यक्ति को सम्मान दिलाती है वहीं व्यक्ति के प्रथम परिचय में ही अमिट छाप अंकित कर देती है। 卐 इसी जीभ में अमृत और जहर बसता है । मधुरता भाषा का अमृत है और कटुता जहर है । यह जहर व्यक्ति के स्वयं के जीवन में भी अशान्ति फैलाता है और अन्य को भी परेशान करता है। आपको अनुभव भी होगा। अगर किसी बात को स्नेह से कहते हैं तो आपका सारा तनाव काफूर हो जाता है । अगर गुस्से में कहते हैं-दो-चार गालियाँ सुनाकर कहते हैं तो तनाव से ग्रस्त रहते हैं ?
-आचार्य श्री जिनकान्ति सागरसूरि ( 'उठ जाग मुसाफिर भोर भई' पुस्तक से)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org