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खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ
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उनके साथ २७ मुनि तथा प्रवर्तिनी कल्याणऋद्धि आदि १५ साध्वियां भी थीं। शत्रुजय तीर्थ पर ही आचार्य श्री ने ज्येष्ठ बदी ७ को भगवान आदिनाथ की प्रतिमा के समक्ष पुष्पमाला, यशोमाला, धर्ममाला और लक्ष्मीमाला को साध्वी दीक्षा प्रदान की।
वि० सं० १३३४ मार्गशीर्ष सुदी १२ को जालौर में गणिनी रत्नश्री को आचार्य जिनप्रबोधसूरि ने प्रवर्तिनी पद प्रदान किया। वि० सं० १३४० ज्येष्ठ बदी ४ को जावालिपुर में ही आपने कुमुदलक्ष्मी और भुवनलक्ष्मी को दीक्षा प्रदान की। अगले दिन अर्थात् ज्येष्ठ बदी ५ को आपने साध्वी चन्दनथी को महत्तरा पद प्रदान किया।
वि० सं० १३४१ ज्येष्ठ सुदी ४ को आचार्यश्री के वरदहस्त से जैसलमेर में पुण्यसुन्दरी, रत्नसुन्दरी, भुवनसुन्दरी और हर्षसुन्दरी को साध्वी दीक्षा प्राप्त हुई।
इसी वर्ष फाल्गुन बदी ११ को आचार्यश्री ने जैसलमेर में ही धर्मप्रभा और हेमप्रभा को उनकी अल्पायु के कारण साध्वी दीक्षा न देकर क्षुल्लक दीक्षा दी। वि० सं० १३४१ वैशाख सुदी ३ अक्षय तृतीया को आपने जिनचन्द्रसूरि को ही अपना पट्टधर घोषित कर वैशाख सुदी ११ को देवलोक प्रयाण किया।
आचार्य जिनचन्द्रसूरि (द्वितीय) ने भी अनेक मुमुक्षु महिलाओं को साध्वी दीक्षा प्रदान कर खरतरगच्छीय श्रमणीसंघ के गौरव की वृद्धि की।
आपके वरदहस्त से वि० सं० १३४२ वैशाख सुदी १० को जावालिपुर में जयमंजरी, रत्नमंजरी और शालमंजरी को क्षुल्लक दीक्षा तथा गणिनी बुद्धिसमृद्धि को प्रवर्तिनी पद प्रदान किया गया। इस दीक्षा महोत्सव में प्रीतिचन्द और सुखकीर्ति को भी क्षुल्लक दीक्षा दी गयी।
वि० सं० १३४५ आषाढ़ सुदी ३ को जावालिपुर में ही चारित्रलक्ष्मी को साध्वी दीक्षा दी गयी ।10 इसी नगरी में वि० सं० १३४६ फाल्गुन सुदी ८ को रत्नश्री एवं वि० सं० १३४७ ज्येष्ठ वदी ७ को मुक्तिलक्ष्मी और युक्तिलक्ष्मी को आचार्यश्री के वरदहस्त से साध्वी दीक्षा प्राप्त हुई। वि० सं० १३४७ मार्गशीर्ष सूदी ६ को पालनपुर में आपने साधु-साध्वियों को बड़ी दीक्षा प्रदान की।12
वि० सं० १३४८ चैत्र वदी ६ को बीजापुर में मुक्तिचन्द्रिका तथा इसी वर्ष वैशाख सुदी ६ को पालनपुर में अमृतश्री को साध्वी दीक्षा प्रदान की गयी ।13 वि० सं० १३५१ माघ बदी ५ को पालनपुर में ही हेमलता को साध्वी दीक्षा दी गयी।14 वि० सं० १३५४ ज्येष्ठ बदी १० को जावालिपुर में आचार्यश्री ने जयसुन्दरी को दीक्षा देकर श्रमणीसंघ में सम्मिलित किया ।
वि० सं० १३६६ ज्येष्ठ बदी १२ को आचार्य जिनचन्द्रसूरि शत्रुञ्जय, गिरनार आदि तीर्थों की यात्रा पर निकले । इस यात्रा में आपके साथ प्रवर्तिनी रत्नश्री गणिनी आदि ५ साध्वियाँ तथा कुछ मुनि भी थे।16 तीर्थयात्रा पूर्ण कर आप भीमपल्ली पधारे जहाँ दृढ़धर्मा और व्रतधर्मा को दो अन्य व्यक्तियों के १. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० ५५. २. वहीं पृ. ५५.
३. वही पृ. ५६.
४. वही पृ. ५८. ५. वही पृ. ५८ः
६. वही पृ. ५८.
७. वही पृ. ५८. ८. वही पृ० ५६
६. वही पृ० ५६.
१०. वही पृ० ५६. ११. वही पृ० ५६.
१२. वही पृ० ६०.
१३. वही पृ० ६०. १४. वही पृ० ६१
१५. वही पृ० ६२.
१६. वही पृ० ६२.
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