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खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ
मेवाड़ के नागद्रह में नवखण्डा पार्श्व जिनालय में श्री सरस्वती की प्रसन्नता प्राप्त की थी। गिरनार के अभिलेखों की खोजकर नरपाल संघपति का विशेष परिचय प्रकाश में लाना चाहिए।
राणकपुर में भी खरतरवसही है जिसके निर्माता का वतिहास प्रकाश में आना आवश्यक है। देलवाड़ा (देवकुलपाटक-मेवाड़) में राणाकुम्भा के मन्त्री नवलखा रामदेव ने खरतरवसही बनवाई थी। देलवाड़ा गांव आबू के देलवाड़ा से भी प्राचीन है । कवि धनपाल ने यहाँ के प्राचीन मन्दिरों को यवनों द्वारा भंग होने का लिखा है । श्रीरामदेव मन्त्री का वंश मेवाड़ में बहुत प्रसिद्ध था। आहड़ (आघाटमेवाड़) के सम्राट सम्प्रति कारापित प्रासाद का जीर्णोद्धार, करहेड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ में भी प्रतिष्ठादि कराने का उल्लेख मिलता है । उदयपुर नगर के सुप्रसिद्ध पद्मनाभ जिनालय का भी निर्माण आपके वंशजों ने ही करवाया था।
___ कन्नाणा में सुप्रसिद्ध महावीर स्वामी की प्रतिष्ठा जिनपतिसूरिजी ने करवायी थी। यह मन्दिर उनके बाबा सेठ मानदेव माल्हू द्वारा निर्मापित था । पाटण में शांतिनाथ जिनालय सोलहवीं शताब्दी में तथा वाड़ी पार्श्वनाथ जिनालय १७वीं शती में बनवाने वाले खरतरगच्छ के महान् श्रावक थे । चौदहवीं शती में दादा जिनकुशलसूरि का पट्टाभिषेक व शत्रुजय की खरतरवसही मानतुंग बिहार के निर्माताओं ने भी पाटण में जिनालय निर्माण कराया था।
शत्रुजय पर मरुदेवी टोंक पर नयी खरतरवसही का निर्माण अहमदावाद के सेठ सोमजी, शिवा, रूपजी परिवार ने गगनचुम्बी शिखर वाला निर्माण कराया था जिसमें ६८ लाख रुपये लगे, मीराते अहमदी के अनुसार ८४००० रुपये की तो रस्सियाँ ही लगी थीं।
सं. १५८७ में कर्मा डोसी के जीर्णोद्धार के समय प्रतिष्ठित एक प्रतिमा मैंने श्रीजिनमाणिक्य सूरि द्वारा प्रतिष्ठित देखी थी।
दिल्ली भारत की राजधानी थी, यहाँ प्रारम्भ से ही खरतरगच्छ का प्रभाव था। मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरिजी के द्वारा दिल्लीपति मदनपाल को प्रतिबोध देने व उनके स्वर्गवास भी यहीं होने की घटना इतिहासप्रसिद्ध है । महरोली का दादातीर्थ प्रसिद्ध है। वहाँ शत्रुजय तीर्थ की स्थापना अपने आप में एक महत्वपूर्ण कीर्तिकलाप है। अभी वहाँ सम्मेतशिखरजी तीर्थ की स्थापना करने का आयोजन है। छोटी दादावाड़ी (साउथ एक्सटेन्शन) मोठ की मस्जिद इलाका में जिनालय और विशाल दादाजी का मंदिर, उपाश्रयादि हैं । नगर में कई मन्दिर विद्यमान हैं । लखनऊ गद्दी का उपाश्रय व नौघरे का सुमतिनाथ जी का जिनालय काफी प्रसिद्ध है । बीकानेर के यतिजन जहाँ चौमासा करते थे, वहाँ भ० पार्श्वनाथ स्वामी का जिनालय है।
हस्तिनापुर तीर्थ में श्वे जैन मन्दिर कलकता के प्रतापचन्दजी पारसान द्वारा निर्मापित था अब वहाँ जीर्णोद्धार होकर विशाल मन्दिर, धर्मशाला, दादावाड़ी आदि बने हैं। निशियांजी के प्राचीन स्थान का भी जीर्णोद्धार हो रहा है।
मेरठ, हाथरस, आगरा आदि में जिनालयादि प्रसिद्ध हैं । मथुरातीर्थ की यात्रा के लिए संघ आदि जाते थे जिनका इतिहास मिलता है । जिनप्रभसूरि और बाद में कई खरतरगच्छाचार्य वहाँ पधारे थे। सौरीपुर तीर्थ नेमिनाथस्वामी की जन्म भूमि है वहाँ अकबर प्रतिबोधक श्री जिनचन्द्रसूरिजी आदि ने यात्रा की है एवं धर्मशाला मन्दिरादि प्राचीनकाल से है। विमलनाथ स्वामी की जन्मभूमि कम्पिल
खण्ड ३/१३ Jain Education International
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