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खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ
११५ प. पू. जन-मन वल्लभा श्री वल्लभश्रीजी म. सा. विद्वत्ता के साथ सरलता एवं नम्रता से वल्लभ वास्तव में सबकी वल्लभ थीं । आपका जन्म लोहावट में पारख गोत्रीय सूरजमलजी की धर्मपत्नी श्रीमती गोगादेदी की कुक्षि से वि० सं० १९५१ पौष कृष्णा ७ को हुआ था। १० वर्ष की उम्र में ही भुवाजी (ज्ञानश्रीजी म.) द्वारा प्रदत्त संस्कार प. पू. गुरुवर्या श्री सिंहश्रीजी म. के प्रभावशाली, वैराग्यमय प्रवचनों से अंकुरित हुए। भुवाजी के साथ दीक्षा लेने का संकल्प कर लिया । व्यक्ति संघर्ष करता है। किंतु ममता के साथ संघर्ष करना कठिन ही नहीं अति कठिन है ।१० वर्ष की उम्र में उन्हें कड़ा संघर्ष करना पड़ा, किंतु जहाँ संकल्प है, वहाँ सिद्धि है । आखिर भुवाजी के साथ ही १९६१ मार्गशीर्ष शुक्ला ५ को महान तपस्वी छगनसागर जी म० सा० के कर-कमलों से दीक्षित हो भुआ-भतीजी की यह अलबेली जोड़ी पू. गुरुवर्या सिंहश्रीजी म. सा. का शिष्यत्व स्वीकार कर कृतार्थ बनी । छोटी उम्र, तीक्ष्ण बुद्धि, दृढ़ लगन, अध्ययन रुचि से आप थोड़े वर्षों में ही महान् विदुषी बन गई । पू. गुरुवर्या का सान्निध्य तो आपको ४ वर्ष ही मिला, किंतु गुरुबहने विशेषकर प. पू. प्रवर्तिनी जी प्रेमश्रीजी म० सा० की आप सर्वाधिक कृपा-पात्र रहीं। यों विनय, सेवाभाव, सरलता के कारण आप सभी की प्रेम पात्र थीं । १० वर्ष तक आप गुरुवहिनों के साथ विचरण करती रहीं। तत्पश्चात् अपनी परमोपकारिणी ज्ञानश्रीजी म. के साथ सुदूर प्रदेशों में भ्रमण किया । शास्त्रों का गम्भीर अध्ययन, प्रभावी-प्रवचन शैली से राजा-महाराजा एवं ठाकुरों ने प्रभावित होकर अहिंसक जीवन स्वीकार किया था। प. पू. प्रेमश्रीजी म. सा. के दिवंगत होने के पश्चात् उनकी परम कृपा-पात्र आपको छोटी सादड़ी में वि० सं० २०१० शरदपूर्णिमा को भव्य समारोह के साथ शिव-मण्डल का नेतृत्व रूप प्रवर्तिनी पद से विभूषित किया । आपके हाथों शासन-प्रभावना के अनेकों कार्य हुए । अंत में जंघावल क्षीण होने पर अमलनेरे महाराष्ट्र में ६ साल स्थानापन्न रहीं । असाता के उदय में आपकी समता गजब की थी । तन वेदनाग्रस्त होता, किंतु मन प्रभु में मस्त रहता । आप वि० सं० २०१८ फा० सु० १४ को समाधिपूर्वक स्वर्ग सिधारी । आपके विशाल शिष्या-प्रशिष्या परिवार में कई साध्वियाँ बड़ी विदूषी, अच्छी व्याख्यात्री, लेखिका एवं कवयित्री हैं। आपश्री ने करीब २० पस्तकों का लेखन संपादन व प्रकाशन करवाया था। वर्तमान में शिव मंडल का नेतृत्व आपकी शिष्याँ प्रवर्तिनी श्री जिनसूरिजी म. कर रहे हैं। उनका परिचय इस प्रकार है
प. पू. वर्तमान प्रवतिनोजीश्री जिनश्रीजी म. सा. आप वर्तमान में शिव-मंडल के प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठित प० पू० प्र० श्री वल्लभश्रीजी म० सा० की प्रधान शिष्या है। आपका जन्म वि० सं० १६५७ आश्विन शु०८ को तिवरी (राज.) में हुआ था । आपके पिता श्री लादुराम जी बुरड़ एवं मातुश्री घूड़ी देवी थी। आपका नाम 'जेठीबाई' था। १४ वर्ष की उम्र में आपका विवाह राजमलजी श्रीमाल के साथ हुआ था किन्तु डेढ़ वर्ष के बाद ही आप विधवा हो गईं। कभी-कभी दुख सुख के लिए होता है । अन्धकार में प्रकाश की किरण चमक जाती है । वि० सं० १९७६ में प० पू० ज्ञानश्रीजी प० पू० वल्लभश्रीजी म० तिवरी पधारी । आप भी गुरुवर्याओं के दर्शनार्थ गई। कुछ ही क्षणों के संसर्ग ने जेठीबाई की चेतना को जगाया। गुरुवर्या श्री तो दूसरे दिन जोधपुर की ओर विहार कर गईं किन्तु जेठीबाई के दिल में हलचल बढ़ती गई । उनके ही पुण्य से खिंची पू० गुरुवर्या का वह चातुर्मास तिवरी में ही हो गया। जेठीबाई की मनोकामना सफल बनी। पू० गुरुवर्या
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