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खण्ड ३ : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ
___ आप आगम साहित्य के धुरंधर विद्वान थे। अनेक चातुर्मासों में भगवती सूत्र का वाचन किया था । अनेक आगम कंठाग्र थे । साधु समुदाय को आगमों की वाचना देते थे। आपने कल्पसूत्र, द्वादशपर्व व्याख्यान एवं श्रीपालचरित्र आदि के हिंदी अनुवाद भी किये थे । आप अच्छे कवि भी थे । आपके द्वारा निर्मित गिरनार पूजा एवं कृपाविनोद इसके प्रमाण हैं । जिनदत्तसूरि पुस्तकोद्धार फंड से अनेक प्राचीन ग्रन्थों का प्रकाशन भी करवाया। आपने अनेकों शिष्य-प्रशिष्यों को दीक्षित किया था। आपकी उपस्थिति में लगभग ३५ साधुओं का समुदाय था । आपका उत्कृष्ट चारित्रधर्म अन्य साधुओं के लिए सर्वदा अनुकरणीय रहा।
संवत् १९९४ माघ सुदि ग्यारस के दिन पालीताणा में आपका स्वर्गवास हुआ। उस समय आपका साधु-साध्वी समुदाय ७० के लगभग था। अनेक स्थानों पर आपकी प्रतिमाएं स्थापित की गई थीं।
(१) जिनजयसागरसूरि श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरि के आप पट्टधर आचार्य थे। इनका जन्म संवत् १६४३ में हुआ था। १६५६ में दीक्षा ग्रहण की थी । सम्वत् १९७६ में सूरत में कृपाचन्द्रसूरिजी ने इनको उपाध्याय पद प्रदान किया था और संवत् १६६० में कृपाचन्द्रसूरिजी ने ही अपने कर-कमलों से इनको आचार्य पद प्रदान किया था । आपके द्वारा निर्मित साहित्य में जिनदत्तसूरि चरित्र दो भाग, गणधरसार्धशतक भाषान्तर, जिनकृपाचन्द्रसूरि चरित्र (संस्कृत) आदि प्राप्त हैं । सिद्धान्तों के प्रौढ़ विद्वान थे। इनका जीवन पूर्णरूपेण विशुद्ध था और दृढ़ संयमी थे तथा ठाम चौविहार करते थे । अनेक स्थानों पर आपने प्रतिष्ठाएं करवाई थीं। आपके ग्रन्थों का संग्रह गढ़सिवाना की दादाबाड़ी में सुरक्षित हैं । बीकानेर में आपका स्वर्गवास हुआ।
(२) उपाध्याय सुखसागरजी श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरि के प्रमुख शिष्यों में आपकी गणना है। आप मूलतः इन्दौर के निवासी थे और मराठा जाति के थे । सेठ कानमलजी के परिचय में आने के बाद इन्होंने कच्छ में जाकर दीक्षा ग्रहण की थी । श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरि ने ही इन्दौर में आपको प्रवर्तक पद प्रदान किया था। १९६२ में आपको उपाध्याय पद प्राप्त हुआ था। अनेक जगह आपने प्रतिष्ठाएँ करवाई, उपधान तप करवाये और आपके गुरुश्री ने जो साहित्य प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ किया था उसे वेग के साथ आगे बढ़ाया और पचासों प्राचीन ग्रन्थ प्रकाशित करवाये । गुजरात, कच्छ, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, बिहार एवं बंगाल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में विचरण कर, चातुर्मास कर शासन की महती प्रभावना की।
संवत् २०२४ वैशाख सुदि नवमी को पालीताणा में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके प्रमुख शिष्य थे मुनि मंगलसागर जी और मुनि कान्तिसागरजी ।
(३) मुनि कान्तिसागरजी उपाध्याय सुखसागरजी के लघु शिष्य मुनि कान्तिसागरजी थे। मूलतः ये जामनगर के निवासी थे और जैनेतर कुल में उत्पन्न हुए थे । संवत् १६९२ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की थी।
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