________________
खरतर गच्छ का संक्षिप्त परिचय : महोपाध्याय विनयसागरजी
वर्ग निर्मापित अनेक प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की थी। यह प्रतिष्ठा महोत्सव जालौर के महाराजा सामंत सिंह के नेतृत्व में हुआ था । ज्येष्ठ बदी ११ के दिन वाचनाचार्य देवमूर्तिगणि को उपाध्याय पद दिया।
संवत् १३४४ मिगसर सुदी १० को जालौर में पंडित स्थिरकीर्ति गणि को आचार्य पद देकर उनका नया नाम दिवाकराचार्य रखा । संवत् १३४५ आषाढ़ सुदी ३ के दिन २ दीक्षाएँ दीं। वैशाख बदी एकम् को २ साधु और २ साध्वियों को दीक्षित किया तथा इसी दिन राजदर्शन गणि को वाचनाचार्य पद से विभूषित किया।
संवत् १३५२ में जिनचन्द्रसूरि की आज्ञा से वाचनाचार्य राजशेखर गणि ने बड़गाँव के ठाकुर रत्नपाल सेठ चाहड़, सेठ मूलदेव आदि श्रावक संघों के साथ पूर्व देश के तीर्थों की तीर्थयात्रा की।
___इसी वर्ष आचार्यश्री ने भीमपल्ली से सेठ धनपाल के पुत्र सेठ भडसिंह तथा सामल श्रावक के द्वारा निकाले हुए श्रीसंघ के साथ तीर्थयात्रा के लिए प्रयाण किया। शंखेश्वर, श्रीपत्तन आदि तीर्थों की यात्रा की। इस वर्ष का चातुर्मास बीजापुर किया संवत् १३५३ मिगसर बदी पांचम को २ साधुओं को दीक्षा दी।
इसके बाद संघ की प्रार्थना से जिनचन्द्रसूरि जालौर आये। जालौर के सेठ सलखण के पुत्र सीहा तथा माण्डव्यपुर के सेठ झांझण के पुत्र मोहन ने तीर्थयात्रा संघ निकाला। इस संघ में आचार्यश्री सम्मिलित हुए । जालोर से आबू तक की यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न कर वापस जालौर आये । संवत् १३५४ ज्येष्ठ बदी १० को जालौर में दीक्षा एवं मालारोपण महोत्सव हुआ, ६ साधुओं और १ साध्वी को दीक्षा दी। इसी वर्ष अषाढ़ सुदी २ को सिरियाणक गाँव में महावीर मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाकर संवत्. १३५५ में महावीर प्रतिमा की स्थापना करवाई । यह महोत्सव सेठ भाण्डा के पुत्र जोधा ने किया।
____ संवत् १३५६ में जैसलमेर महाराजाधिराज जैत्रसिंह की प्रार्थना से मिगसर बदी ४ को जैसलमेर पधारे । आचार्यश्री की अगवानी करने के लिए स्वयं महाराजा ४ कोस सम्मुख आये थे। प्रवेश महोत्सव दर्शनीय व संस्मरणीय था । संवत् १३५७ में २ को दीक्षित किया । संवत् १३५८ माघ सुदी १० को पार्श्वनाथ विधि चैत्य में अनेक प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई। संवत् १३५६ में फाल्गुन सुदी ११ को एकादशी के दिन बाडमेर पधारे । संवत् १३६० माघ वदी दशमी को मालाधारणादि महोत्सव हुआ। वहाँ से सिवाणा पधारे । संवत् १३६१ वैशाख बदी ६ के दिन अनेक स्थानों से आये हुए सवा लाख मनुष्यों की उपस्थिति में अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई। इसी अवसर पर पंडित लक्ष्मीनिवास गणि और हेमभूषण गणि को वाचनाचार्य पद दिया।
एक बार पूज्यश्री संघ के साथ पुनः संवत् १३७५ वैशाख बदी ८ के दिन नागौर पधारे । मंत्रीदलीय कुलभूषण ठाकुर अचलसिंह श्रावक ने बादशाह कुतुबुद्दीन सुल्तान से सर्वत्र निर्विरोध यात्रा के लिए फरमान प्राप्त किया। जगह-जगह निमन्त्रण-पत्र भिजवाये गये। चारों तरफ के यात्रार्थी श्रीसंघ नागौर आये । शुभमुहूर्त में आचार्य जिनचन्द्रसूरि की अध्यक्षता में यात्रोत्सव प्रारम्भ हुआ। वहाँ से संघ नरभट्ट पहुंचा। वहाँ दादा जिनदत्तसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित नवफना पार्श्वनाथ के दर्शन किये । वहाँ से बागड़ देश होते हुए कन्यानयन पधारे । यहाँ पर भी दादा जिनदत्तसूरि स्थापित महावीर स्वामी को नमन किया। वह से संघ प्रयाण करता हुआ हस्तिनापुर पहुँचा। वहाँ महोत्सव मनाया गया। वहाँ से संघ चलता हुआ दिल्ली के पास तिलपथ नामक स्थान पर पहुंचा। यहाँ के निवासी द्रमकपुरीयाचार्य ने मात्सर्यवश बादशाह कुतुबुद्दीन के सामने झूठी शिकायत की । बादशाह ने संघ का प्रयाण रोक दिया। संघनायक जिनचन्द्रसूरि
१. इसी समय की प्रतिष्ठित महावीर पंचतीर्थी, बीकानेर के चिन्तामणि मन्दिर (भूमिगृह) में विद्यमान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org