________________
खण्ड २ श्रद्धार्चन काव्याञ्जलियाँ
अभिनन्दन गीत
- साध्वी सम्यक्दर्शनाश्री जी
(प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्रीजी म० की शिष्या) (तर्ज-छोड़ गये बालम)
वन्दन है बारम्बार, ओ गुरु तुझ चरणों में मेरा ॥ हरे ।। राजस्थान की पुण्य धरा, जयपुर में जन्म लिया। वैशाखी पूनम का दिन था, सबके मन को हर्ष किया ॥ १॥ माता-पिता परिवार सभी की, बनी प्राणों से प्यारी। लाड़-प्यार से बीता बचपन, पढ़-लिख बनी संस्कारी ।। २ ॥ सांसारिक सुख साधन सारे, छोड दिया जग खेला। अपनी आँखों से सब देखा, इस दुनिया का मेला ॥ ३ ॥ गुरु चरणों का आश्रय लेकर, किया ज्ञान विस्तारा। समता ममता की मूर्ति है, जीवन गंगा धारा ।। ४ ।। प्रवत्तिनी पद अर्पित करके, किया संघ अभिनन्दन । तुझ पावन चरणों में सम्यक्, का है शत-शत वंदन ॥ ५॥
अभिनन्दन करना स्वीकार
- साध्वी सम्यकदर्शनाश्री
हे जिन शासन शृंगार, तुझे हम वन्दन करते हैं । तेरी महिमा अपरम्पार, तुझे हम वन्दन करते हैं । टेर । संयम विभूति समता मूर्ति, विनय विवेक विशाल । श्रमणी श्रेष्ठा बनी है ज्येष्ठा, कोई न तेरी मिशाल ।। प्रखर व्याख्यातृ आशु कवयित्री, आगम मर्मज्ञा जान । स्वाध्यायरत रहती अप्रमत, देती सबको सम्यक् ज्ञान ।। नाम है सज्जन काम है सज्जन, सरल सहज व्यवहार । सौम्याकृति सम्यक् प्रकृति, अभिनन्दन करना स्वीकार ।।
( ६१ )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org