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भावधारा
-अजय कुमार गोलेछा, जयपुर प्रकृति नटी ने साज सजाकर अनुपम रूप दिखाया है।
श्री महावीर की अनुकम्पा से यह पावन दिन आया है। करते हैं तन मन से वन्दन, जननी ममतामयी आपका । ___ आराधन अपनी संस्कृति का, अभिनन्दन तव आत्मत्याग का। शोभित है दिन रवि से और निशा रजनीकर से
पंकज शोभित है तड़ाग से जग शोभित महाराज आप से । पूर्णमासी के पूर्णचन्द्र की चन्द्रकला सी उदित हुई
शत वन्दन है अभिनन्दन है ज्ञान ध्यान की रश्मि छवि। पंच महाव्रत धारिका जप-तप संयम है साधना
कोटि-कोटि वन्दन स्वीकारो अन्तर्मन की यही कामना। इन श्रद्धा विश्वास सूत्रों में बँधे हुए, हैं हम आपके सहचर
गोलेछा परिवार में बोये हैं आपने प्रकाश के बीज अमर ।
पुष्पान्जली
-केसरीसिह चौरडिया, कलकता स्वनाम धन्य विद्वान विदुषी गरुवर्या श्री सज्जनश्री जी वन्दन कर मैं धन्य हुआ वयोवृद्ध श्री महासती जी का अभिनन्दन करने को तेरा “खरतरगच्छ जैन" संघ का भाव जगा धन्य यहाँ के श्रावक श्राविकाएं जयपुर नगर का भाग्य जगा गुणगाथा मैं लिखू विनय से तुम हो आगम ज्योति जैन धर्म कुल अवतरण हुई, गुणवान प्रभावी "मोती" जाज्वल्यमान चारित्र आपका चन्दा जैसा शीतल शांत स्वभावी महाप्रभावी पथ प्रदर्शिका भूतल प्रवर्तिनी पद से शोभित है आज हमारी महोदया उनके मन में बसी हुई है प्राणी मात्र के लिये दया उनको नहिं लालच कुछ भी था अपनी ख्याति का फर्ज हमारा भी बनता है सेवा कुछ तो करने का गुणगान करें जितना तेरा हृदय नहीं भरता है दर्शन तेरा मिले नित्य दिल ऐसा करता रहता है मजबूरी है गुरुवर्या हम दूर आपसे बसे हुए फिर भी भवर-केसरी हृदय में, गुरुवर्या जी बसे हुए।
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