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खण्ड २ : श्रद्धार्चन : काव्यञ्जलि आस्था के मोती
संतों की वाणी पर गजल सुश्री प्रतिभा लूणिया, शेरगढ़ 0 उमा श्रीवास्तव 'उमाश्री' आर्य भूमि में तुमने अवतार लिया
संतों की वाणी पर गर देश चला होता, आर्य संस्कृति से आत्मा का संस्कार किया
बेकसूर न मरते, सबका ही भला होता, आर्य अणगार बन हृदय में तुमने
आतंकवाद और उग्रवाद से असुर नहीं होते, आर्य विचारों का साकार किया ॥१॥ उपदेशों का अमृत गर एक बार चखा होता, जिन शासन की हो तुम शान
खंडित न हो पाती विवेक और बुद्धि, स्वीकार की तुमने महावीर की आन
उपदेशों का चन्दन गर शीश मला होता, संसार में जब तक चांद सूरज हैं
नफरत की नागफनी नहीं उठाती सिर, तब तक हम गायेंगे तेरे गुणगान ॥२॥ नेह के तुलसी चौरे पर गर दीप जला होता, अध्ययन ही जिनके जीवन का प्रथम अंग हैं
मणि से ज्यादा मूल्यवान है संतों के आशीष, सेवा ही जिनके जीवन का दूसरा उपांग हैं
उनके पद चिह्नों पर गर पथिक चला होता। सरलता ही जिनके जीवन में पद-पद पर मिलती है ऐसी अद्भुत गुरुवर्या के पद्धों में मेरी प्रणति है ॥३॥ 'आगमज्ञा' सज्जनश्री अध्ययन ही जिनके जीवन की सहजात वृत्ति है
- प्यारा मूथा, अमरावती अन्य को पढ़ाना ही जिनकी प्रवृत्ति है लेखन काव्य रचना में रत रहती हुई
चर अचर जग में तेरा 'रत्नत्रयी' राज रहे, जिनका मुख्य लक्ष्य संसार निवृत्ति है ॥४॥ छ: दर्शन के मुकाबिल में तू सरताज रहे।
0 'वीर' से देव जहाँ 'हरि' से गुरुराज रहे, पूज्या गुरुवर्या सबसे आली है उस 'प्रवर्तिनी सज्जन' के ही सरताज रहे। . प्रकाशचन्द निर्मलकुमार बांठिया 'ज्योति आगम' की जली, गैर दिये सब मंद हुए,
इक यही रोशनी संसार में जाबांज रहे । पूज्या गुरुवर्या सबसे आली है.........
बज रहा डंका जिनांगन में तुम्हारे बाइस, वो शांत सरल चित्त वाली है।
दस दिशाओं में सदा गजती आवाज रहे । सूरत मोहनगारी है सबका मन हरने वाली है। मीठी मधुरी वाणी है मानो अमृत की प्याली है।।
ज्ञान की आग में तप-तप के बनी तुम कुन्दन, ४५ आगमज्ञान वाली है, प्रवर्तिनी पद की धारी है। पर लगें यश को, बुलंद और भी परवाज रहे। जीवन में जिनके रत्नत्रय की आराधना निराली है। 'ईश' दे उम्र तुम्हें और सलामत रक्खे, जैनशासन की मजबूत डाली है, ..
चहुँ ओर हरियाली है।
। सुज्ञ संसार को संयम पे तेरे. नाज रहे। ज्ञान मंडल में खुशियाली है, मानो आई दीवाली है। पूज्य ! स्वीकारो मेरा भाव भरा दिल का प्यार,
___ 'प्यार' जो कल भी रहा, कल भी रहे, आज रहे ।
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