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करते तेरा अभिनन्दन !
-गणी श्री मणिप्रभसागरजी म.
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सज्जनश्री की काया के मिस, सज्जनता ने धारा अंग। सज्जनता की उपासना चल, रही निरन्तर नित्य अभंग ॥१॥ महावीर प्रभु के शासन का, लिये हुए शुभ वेश धवल । परिणामों की परम धवलिमा, पल-पल बना रही उज्ज्वल ।।२॥ शम-दम संयम सत्य अहिंसा, तत्व साधना के कर स्थिर । तत्पर बनी साधिका सज्जन, पूर्ण समर्पित कर निज सिर ।। ३ ।। उजड़े उखड़े झाड़ मूल जड़, पड़े पान फल-फूल कहीं। बीज सुरक्षित रह जाने पर, मानी जाये भूल नहीं ॥ ४॥ बाह्याभ्यन्तर का जो अन्तर, यही कषाय यही बन्धन । संयम अनल अनिल हो समता, अन्तर बन जाये ईंधन ॥५॥ कथन सरल अति कठिन आचरण, धन्य वही जो करे, तरे। मर मिटने की हिम्मत वाले, प्रलयकाल से नहीं डरे ॥ ६॥ साध्वी सज्जनश्री का करते, सज्जन जन मन अभिनंदन । सज्जनता के श्री चरणों में, त्रिभुवन का शत-शत वंदन ॥७॥ सत्कृत सम्मानित स्तुत नित हित, परहित निरता विरता नित्य । सज्जनश्री की सज्जनता से, रहे प्रकाशित सत् साहित्य ॥ ८ ॥ प्रवर्तिनी प्रवरा आर्याथी, सहृदया सरलात्मा शुचितम । सौम्याकृति अति प्रतिभावाली, साध रही शम दम संयम ॥६॥ तेरा मन नहीं यहाँ पर, अस्थिरता में स्थिर आत्मा । झांक रही आत्मा आत्मा में, मिल जाये गर परमात्मा ।।१०।। 'मणिप्रभ' करता सज्जनश्री का, अभिनंदन स्वीकारा जाय । सबसे शोभित आप, आपसे, शोभित है सारा समुदाय ॥११॥
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