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'गुणाष्टक'
-चन्द्रप्रभाश्रीजी
भव्यजन तारिके, विमल गति धारिके,
चन्द्रिके जैन गगनांगणस्य, शुद्ध श्रद्धान्विते, सुदृढ़ सकल्पिके प्रणति तव पाद युग्मे मदीयम् त्यक्त यौवनवये, जनक - पति वैभवे, जैन मार्गानुगामिनी सुधन्या, सरल संभाषिणी विनय नय वासिनी प्रणति तव पादपद्मे मदीयम् दुरितमतिवारिणी सर्वहित कांक्षिणी, तारिणी भव्य भवविशद नौका, कलुषिता नहि कदा वासित मुदा, प्रणति तवपादपद्म मदीयम् आगम श्रुतरता तत्व चिंतनपरा, सदा निष्ठित मति ज्ञान गंगे, खरतरगच्छ सु दिव्य मणिवत् सदा, प्रणति तव पादपद्मे मदीयम् सज्जननाम तव कर्मरिपु रोधनं, बोधनं शुद्ध भावानुभावम्, मातृवात्सल्यरस सतत संचारिणी, प्रणति तव पादपद्मे मदीयम् जन शासन समुन्नति, सदा कांक्षिणी, राजते शशिप्रिया जयसुदिव्या, तत्व सम्यग् शुभभाव दर्शनयुते, प्रणति तव पादपद्मे मदीयम् कामना सतत तव संगति मम इहि गमनवेलाअति दारुणाहि
विप्रलम्भो तव शल्य तुल्यं मम, प्रणति तव पादपद्मे मदीयम् विदुषीवर्यामति कुमति विद्राविणी, ज्ञान उपयोगमयि धर्मशीले । विचक्षण चरणरज, चन्द्र गुण संस्तुता प्रणति तव पादपद्मे मदीयम्
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शत-शत वन्दन
- विजयकुमार जैन
शत-शत नमन कर रही मृत्तिका शत-शत नमन कर रहा समीर शत-शत नमन कर रहे आज घन शत-शत नमन उदधि कर गंभीर शत-शत नमन कर रही यह क्षिति करते हैं हम सब भी वन्दन जन्म दिवस पावन बेला पर शत-शत वन्दन शत अभिनन्दन ।
नारी के प्रति
- मनु
अपनों ने अवज्ञा
पीडा परायों ने
संस्कृति ने संकट
और विधि ने दी वेदना ।
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नारी तू निर्मल है कलियों सी कोमल है स्नेह प्यार ममता का निर्बाध निर्झर है ।
अम्बर से अन्तर में धरती का धीर लिये
कष्टों से क्रीडा कर पीर कोटि पिये जा |
जीवन की ज्वाला में तप-तप तपस्विनी अविरल आलोकित कर जगती में ज्योति जला ।
स्मृतियाँ जो संजो विस्मृत कर व्यथा को नियन्ता की निर्दय झंझा को 'झुठला दे I
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