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खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएं उसी प्रकार पू. गुरुवर्याश्री ने मुझे सद्मार्ग बताकर ___मैं आपश्री से इतनी प्रभावित हूँ कि यद्यपि मैं मुझ पर अनन्य उपकार किया है।
सांसारिक जीवन में रह रही हूँ लेकिन प्रतिक्षण विचक्षण भवन का निर्माण चल रहा था तब
आपश्री की निराली छवि आँखों के सामने गुरुवर्याश्री की प्रेरणा से ही मैंने व्याख्यान हाल
छायी रहती है और घर के कार्य करती हुई भी बनवाने में सम्पत्ति का सदुपयोग किया।
ध्यान आपश्री की ओर चला जाता है। मैंने अपने
जीवन में ऐसी शान्त सरल छवि कभी किसी की गुरुव-श्री के चरणों में सश्रद्धा, सभक्ति, नहीं देखी । आप युग-युग तक जैन शासन को सविनय प्रार्थना करती हूँ कि जब-जब भी कुमार्ग प्रभावना करती रहें। पर भटकू सदा आप मुझे ज्ञान की ज्योति दिखा सुमार्ग पर ले आये।
- कमलेश भंडारी, जयपुर गुरुदेव से प्रार्थना करती हूँ कि पू० गुरुवर्याश्री दीर्घायु बन संसार-रसिक जीवों को अपने उपदेश मुझे जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है कि से शासन-रसिक-मोक्ष-रसिक बनायें। इसी शुभ- पू. प्रवर्तिनी गुरुवर्या श्री सज्जनधी जी म० सा० कामना के साथ
के त्याग-तप-संयम का शालीन अभिनन्दन ग्रन्थ
प्रकाशित हो रहा है ? U विमला झाड़चर, जयपुर
वैसे तो उनका जीवन ही त्याग-तप-संयम से ..."बहमखी प्रतिभा और आपके द्वारा प्रेरित परिपूर्ण है फिर भी लिखित शब्दों के माध्यम से भक्ति ज्ञान से देश परिचित है। आपने अपनी उनके गुणों को एक सूत्र में बाँधने का जो निर्णय उच्चतम साधना एवं ज्ञान के द्वारा देश और विदेश लूणिया परिवार ने लिया है वे बहुत ही भाग्यशाली के सहस्रों मानव प्राणियों का कल्याण किया है। हैं। आपश्री सरल स्वभावी शान्तमूर्ति हैं आपकी अमृत- मैंने गुरुवर्या श्री को बहुत ही निकटता से मयी वाणी और आशीर्वाद में जैसे जादू ही भरा देखा-देखने पर कभी ऐसा न पाया कि उनके
जीवन में प्रमाद है । सदा अप्रमत्तदशा में रहती
हुई स्वयं स्वाध्याय करती हैं व अन्यों को करवाती मेरा स्वयं का अनुभव है कि कभी ज्वर या सिर में दर्द या अन्य कोई व्याधि शरीर में हो जाती है तो आपश्री का वासक्षेप आशीर्वाद मिलते अध्ययन व अध्यापन में सदा मग्न रहती हुई ही शान्ति अनुभव होती है। जब भी मैं उपाश्रय में आत्म गुणों को विकसित करने में अपने जीवन के आती तो आप जैसी शान्ति-मूर्ति के दर्शनों से हर क्षणों को जोड़ा । बाह्य व्यर्थ के कार्यों में आत्मा को अनन्त शान्ति मिलती है। मेरी तो कभी भी अमूल्य क्षणों को नष्ट नहीं करती हैं। प्रतिक्षण यही इच्छा रहती है कि आपश्री के पास गरुदेव से प्रार्थना करती हैं कि आपश्री के ही बैठी रहूँ और अमृतमयी वाणी का पान करती जीवन के आंशिक गुण मेरे जीवन में भी प्रविष्ट रहूं । आपश्री की वाणी में मानों अमृत ही बरसता हों जिससे मेरा जीवन सफल बने व सत्पथ को है बस मन यही चाहता है कि आपश्री बोलती ही प्राप्त कर संसार के जन्म-मरण के चक्र से छूटकर रहें।
सिद्धत्व को प्राप्त करूं।
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