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खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ
अचलगच्छीय साध्वीश्री ज्योतिष्प्रभाजी म० यिल महापुरुषना गुणो गाइ शकाय, सागरना बिन्दु,
अकाशना तारा, रेतीना कणीया, गणवा जेम अशक्य विश्वनी अन्दर गुरुभगवन्तों विश्वना जीवोना छे तेम मारी बुद्धया अमना गणेनु मूल्य करबु अशक्य हितने माटे जीवन जीवनारा होय छे । मानवना छ । अवा आगमप्रज्ञ गरुभगवन्त श्री जी ने कोटी.... काडे बाधेलु घडियाल मानवने काम आवे छे । घरमां कोटी वंदन""वंदन""वंदन। रहेलु घडियाल घरना माणसोने काम आवे छे, शेरीमा रहेलु घडियाल शेरीना माणसोने काम आवे . विचक्षण ज्योति, छ । परन्तु टावर बधाने काम आवे छे । तेम गुरु भग
साध्वी श्री चन्द्रप्रभाश्री वन्तो विश्वनां तमाम जीवोना हितने माटे टावरनी
___ वर्तमान युग की जाज्वल्यमान व्यक्तित्व एवं जेम पोताना जीवन ने जीवीने दुनियानां तमाम दैदीप्यमान कृतित्व की देवी, वात्सल्यवारिधि, जीवोनु भलु करनारा होय छे, महान प्रताप
अप्रतिम प्रतिभा की धनी, अनुपम साधिका, शाली, प्रतिभासंपन्ना, अजोड वक्ता, नाम तेवा गुणोने
परम श्रद्धया प्र० म० श्री सज्जनश्रीजी म० को प्राप्त करणारा प० पू. आगमप्रज्ञ सज्जनश्री
वन्दन। जी म. सा. ना गुणोनु हुँ शु वर्णन करू ! जेमना
भगवान् महावीर के पद जिनके अणु-अणु में जीवनमा सज्जनता रगेरगमा भरेली छे, प्रमालता, व्याप्त हैं. ज्ञानदायिनी माँ सरस्वती के प्रति एकाग्र अमीदृष्टि, वाल्सल्यता, परार्थरसिकता, मंत्रीभाव, साधना, गुरुदेव एवं गुरुवर्या श्री के प्रति समर्पित निस्पृहता आदी अनेक गुणों ऐमने जे वरेला छे, ज्ञान भावना, सहनशीलता की महाकाव्य, स्नेह सहानुभूति पिपासु तो एवा छे के जेमना सान्निध्यमा जे आवे की सारस्वत गंगा, सहज स्फूर्त अध्यात्म धारा तो व्यक्ति ज जाणी शके ।।
प्रवाहिका, अनन्त दैविक गुणों की खान पूज्य प्रवर्तिनी ह, जामनगरमां चातुर्मास हती. त्यारे मने अनु- साध्वीजी श्री सज्जनश्रीजी म.सा. के जीवन से भव थयो । ए जणावता आनन्द थाय छे के आवा मैं अन्तस्तल तक प्रभावित हूँ। गुणियल गुरुना गुणों लखवानो अवसर मल्यो । युग की इस महान् मनीषी का अभिनन्दन पुज्य श्रीजीनो स्व-पर-दर्शननो बोध अपूर्व कोटीनो यथार्थतः इस अनुपम गरिमामय गुणों का ही अभिछे अमेणो घणा आगमग्रन्थोनु वांचन मनन परिशीलन नन्दन है। चिन्तन अने अनुप्रेक्षा करेली छे । अमे बन्ने ठाणा इस पुनीत अवसर पर मैं श्रद्ध या गुरुवर्याश्री अमनी पासे सुयगडांग सुत्रनी टीका वांचवा जता। के सचरणों में अभिनन्दन-अभिवन्दन के समकित त्यारे अमेनी समजाववानी कला अनुभवी अजब पुष्प समर्पित करती हूं। कोटीनी के आपणने हृदय मां बसी ज जाय, बीजी 0 साध्वी श्री मुदितप्रज्ञाश्री पर पुस्तक हाथमा लेवानी जरूर ज न पड़े। ज्यारे
____संसार के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया जईय त्यारे अप्रमत्त दशा ऐवी के पुस्तक हाथमां
है कि “सन्त भारत की आत्मा है, भारतीय इतिज होए, गमे ते समये गया होईए पण क्यारे अमेना
हास के निर्माण में वे नींव की ईंट के रूप में रहे मुखमांथी नकारनो नाम ज नथी ।
हैं। जिस प्रकार प्रत्येक पर्वत पर मणियाँ नहीं वात्सल्यथी भरपूर अमेनु हृदय ने जोईने गुरु- होतीं, हर हाथी के मस्तक में मुक्ता नहीं होती, हर समर्पण भाव उमेराया विना रहे ज नहीं । पोताना जंगल में चन्दन के वृक्ष नहीं होते उसी प्रकार प्रत्येक विशाल शिष्या वृन्दमा पण अमेने अधिक व्हालथी स्थान पर सज्जन पुरुष नहीं होते। महापुरुष अपने अभ्यास करावता, आ नानकडी जीभथी आवा गुण- व्यक्तित्व के कारण महान् बनते हैं । व्यक्तित्व
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