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खण्ड १ । व्यक्तित्व-परिमल : संस्मरण
बृद्धावस्था होते हुए भी आप आठों याम साधना संलग्न व ज्ञानमग्न रहते हैं। जब देखो तब कभी कुछ चिंतन, कभी कुछ लेखन, कभी कुछ रचनाएँ तो कभी उपदेश, प्रेरणा व मार्गदर्शन देते हुए अप्रमत्त भावों में विचरण कर रहे हैं । आपका विचरण क्षेत्र भी विस्तृत रहा । गुजरात, सौराष्ट्र, राजस्थान, बंगाल, कलकत्ता, लखनऊ आदि क्षेत्रों में विचरण कर जैन जैनेतर जनता को अपनी ज्ञान गंगा में स्नान कराके पावन कर दिया, जैनशासन की अनुपम प्रभावना के साथ-साथ कई भव्यात्माओं को प्रतिबोध दे दीक्षित किया जो आपके पावन सान्निध्य में ज्ञानाराधना, संयम साधना, व चारित्रोपासना में सतत संलग्न हैं एवं भिन्न स्थानों में चातुर्मास कर जिनशासन की महती प्रभावना कर रही हैं।
आपकी पूर्ण योग्यता के कारण प. प. प्र. जैन कोकिला विचक्षणश्रीजी म. सा. ने अपना उत्तराधिकारी (प्रवर्तिनी पद के लिए) आपको उपयुक्त घोषित किया। सं० २०४२ के मिगसर कृष्णा ६ को जोधपुर में प्रवर्तिनी पद से विभूषित कर प. पू. प्र. पुण्यश्रीजी म. सा. की पदपरम्परा में प. पू. आचार्यप्रवर जिनकांतिसागर सूरीश्वर जी म. सा. ने चतुर्विध संघ के समक्ष प. पू. स्व. प्र. विचक्षणश्रीजी म. सा. की पद धारिणी बनाया।
गुरुदेव से प्रार्थना है कि आपको वैराग्य दान प्रदान के साथ दीर्घायु करें, यावच्चन्द्र दिवाकरो जिन शासन सेवा में तत्पर रह साहित्य समृद्धि को बृद्धिंगत करते हुए सरस्वतीसुता नाम सार्थक करें इसी शुभ कामना के साथ नमित हूं!
0 साध्वी कनकप्रभाजी म. सा.
(सुशिष्या पू० श्री सज्जनश्री जी म. सा.) स्वभाव में सरलता, व्यवहार में नम्रता, वाणी में मधुरता, मुख पर सौम्यता, नयनों में तेजस्विता. हृदय में पवित्रता, स्वभाव में सहजता पू० गुरुवर्याश्री का जीवन उक्त उपमाओं से परिपूर्ण है। गुरुवर्याश्री के जीवन को कहीं से भी झांककर देखो उसी तरह दिखाई देगा जिस तरह गंगा नदी का पानी किसी भी छोर से पिओ मीठा ही होगा। मिश्री को किसी भी कोने से चखो मीठी हो होगी । गुलाब .. के फूल को कहीं से भी किसी भी पत्ती को सूघों एक सी खुशबू होगी। इनके जीवन के गुणों को शब्दों में बाँधना उतना ही दुष्कर है जितना पानी में पड़ते प्रतिबिम्ब चन्द्रमा को पकड़ने का, फिर भी अपनी अल्पबुद्धि से उनके सभी गुणों को सीमित शब्दों में अभिव्यक्त करने का प्रयास कर रही हूँ।
. स्वभाव में सरलता-आपका स्वभाव अत्यन्त सरल है। कपट, माया, छल का नामोनिशान नहीं है जैसे अन्दर हैं वैसे ही बाहर हैं । आपके स्वभाव की सबसे बड़ी विशेषता है अन्तर और बाह्य की एकरूपता।
वाणी में मधुरता-जैसे अमृत देवताओं की सम्पत्ति है उसी प्रकार मधुर वाणी मानव की निज सम्पत्ति है। मृदुवाणी आकर्षण कला का मुख्य केन्द्र है। यद्यपि सौन्दर्य भी सभी के लिये आकर्षण का केन्द्र है किन्तु चेहरे पर चाहे जितना सौन्दर्य हो यदि वाणी में मधुरता नहीं है, वाणी में सौन्दर्यता नहीं है तो चेहरे का सौन्दर्य फीका है । प्रकृति ने मयूर को असीम सौन्दर्य दिया ऐसा लगता है कि चित्रकार ने अपनी सारी कला को वहीं लगा दिया किन्तु वाणी का सौन्दर्य नहीं दे पाया। शरीर का सौन्दर्य होते हुये भी वाणी के सौन्दर्य के अभाव में मयूर किसी भी कवियों की काव्य भूमि में स्थान नहीं ले पाया। जबकि कोयल आकृति के सौन्दर्य के अभाव में भी वाणी की सौन्दर्यता के कारण कवियों की काव्यभूमि में अमर हो गयी, चेहरे के सौन्दर्य का महत्व नहीं है।
मधुरता का महत्व-पू. गुरुवर्याधी की वाणी में कोयल की तरह मिठास है । जब कभी भी किसी
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