________________
खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ D साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी प्रवर्तिनी श्री जी के सम्बन्ध में एक महान
दार्शनिक आचार्य का दिव्य उद्गार स्मृति-पटल पर जैन श्रमणी का जीवन त्याग-तपस्या-संयम-सेवा अवतरित हो रहा है "वसन्तवल्ले कहित चरन्त । की चतुर्मुखी ज्योति है, वह पवित्रता और प्रशम अर्थात् महान संयमी सन्त-जीवन वह है जो ऋतुरस की स्रोतस्विनी है । युग-युग से मानव को जीवन राज बसन्त के समान लोकहित का निर्माण करते को ऊर्ध्वगामिता का सन्देश सुनाती आई है श्रमणी! हैं। सत्कर्म के दिव्यपुष्प उनके द्वारा आरोपित किए
श्वेताम्बर मतिपजक परम्परा में खरतरगच्छ हए ऐसे खिलते हैं, महकते हैं कि सष्टि का रूप कुछ परम्परा की प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्रीजी महाराज का और का और हो जाता है । मानव के मन का कणजीवन भी संयम की दीर्घ साधना का जीवन्त इति- कण खिल उठता है, इस प्रकार के बसन्त के आविहास है। तेरापंथ परम्परा के साथ उनका बहुत ही र्भाव में । सज्जनश्री जी साधना के क्षेत्र की ऐसी नजदीकी पारिवारिक सम्बन्ध रहा है। आपके ही बसन्त हैं । सौजन्य और सरलता से हम सभी सुपरिचित हैं।
साधुजीवन सहज रूप से स्वयं ही एक अभिऐसी समत्व साधिका विदुषी श्रमणी का अभिनन्दन
नन्दन है । फिर प्रवर्तिनी श्री जी जैसे निर्मल, जैनत्व की गरिमा को अवश्य मंडित करेगा।
निश्छल एवं सहज उदात्त साधु-जीवन का तो कहना ही क्या ? मुझे प्रसन्नता है प्रवर्तिनीश्री जी के
सम्बन्ध में एक विराट समादरणीय अभिनन्दन ग्रन्थ - आचार्य श्री चन्दनाजो
प्रकाशित किया जा रहा है । मैं उक्त प्रकाशन रूप
सत्कार्य में संलग्न सुयोग्य साध्वीजनों का, साथ ही - (वीरायतन)
भावनाशील भक्त उपासकों का भी हृदय से अभिसाध्वी रत्न सौम्यमूर्ति प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री नन्दन करती हूँ। सत्कर्म किसी के भी द्वारा हो वह जी की मधुर-स्मृति मन-मस्तिष्क पर सहसा सर्वतोभावेन सदैव अभिनन्दनीय है। ज्योतिर्मय हो उठी है । उनके मिलन का काल काफी लम्बी यात्रा कर चुका है फिर भी ऐसा लगता है कि वे अभी-अभी मिली हैं और उनके मिलन की सुगंध आस-पास के वातावरण में आज भी महक
0 आर्या धर्मश्री रतिश्री म० सा० रही है।
प्रवर्तिनी श्री जी का जीवन एक ऐसे मंगलदीप का जीवन है, जो दीप से दीप प्रज्वलित होते रहने परम विदूषी आगमज्योति प्रवतिनी श्री सज्जनकी सक्ति को फलितार्थ करता है । उनके द्वारा श्री जी म. खरतरगच्छ की ही नहीं अपितु जैन अनेक भव्य आत्माओं का जीवन निम्न धरातल से समाज की विशिष्ट प्रतिभासम्पन्न साध्वी हैं। वे ऊपर उठकर सदाचार एवं संयम के एक-से-एक आगममर्मज्ञा हैं, समता-सरलता की साक्षात देवी ऊँचे शिखरों पर पहुँचता रहा है।
हैं। आपका अनुपम व्यक्तित्व जैन अजैन सभी के लिए महासती जी ज्ञान एवं कर्म की मिलनमूर्ति हैं। श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है । आपकी जन-कल्याण ज्ञान और तदनुरूप कर्म के क्षेत्र में जो इन्होंने मय वाणी सभी के दिलों में गुजित है। आपकी अनेकानेक स्थानों में बीजारोपण किये हैं, वे अंकुरित व्याख्यान शैली सरलतम है, कठिन से कठिन आगम ही नहीं अपितु सुचारु रूप से पल्लवित, पुष्पित वाणी को सुगमता से समझाकर श्रोता को सन्तुष्ट होते हुए अन्ततः फलित स्थिति में भी पहुंचे हैं। कर देती हैं । आपके व्याख्यान मनोरंजन के लिए For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International