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खण्ड : २ आशीर्वचन : शुभकामनाएँ
साधक के गुणों को विकसित किया । उन्हीं के उप- जो आगमप्रज्ञ हैं, द्रव्यानुयोग जिनका प्रिय देश, उन्हीं का आचरण जन-मन को प्रभावित ही विषय है। अपनी असाधारण ज्ञान-प्रतिभा द्वारा नहीं करता अपितु अन्तर् विकास की भावना भी द्रव्यानुयोग जैसे कठिन ग्रन्थों का भी बाल जीवों के उत्पन्न करता है। ये सभी गुण सज्जनश्री जी में लिये सुलभ भाषा में अनुवाद किया । विद्यमान हैं।
ऐसी महान विदुपी प्रवर्तिनी पद से विभूषित इनका जीवन इनके नाम के अनुरूप ही है। स्वनामधन्या साध्वीजी सज्जनश्री जी का अभिनन्दन आगम, द्रव्यानुयोग, संस्कृत जैसे कठिन विषयों की विशेषांक प्रगट करके जयपूर जैन संघ बहमान कर पूर्णतया ज्ञाता होने के साथ ही गम्भीरता, सरलता, रहा है, इस की हमें परम खुशी है। स्पष्ट वक्ता आदि अनेक गुणों से मंडित उनका
___ जिनेश्वर प्रभु से प्रार्थना है कि साध्वीजी चिरायु जीवन पुष्प की सौरभ के समान आज भी जन
हों और जैन संघ एवं खरतरगच्छ की सेवा करतेमानस में छाया हुआ है।
करते अपनी आत्मा का भाव-मंगल करें। ___ कहा भी है जो साधु-साध्वी निर्दोष मार्ग पर चलते हैं तथा निष्काम होकर दूसरे मनुष्यों को भी उस सत्य मार्ग पर चलाते हैं वे खुद तो भवसागर से तरते हैं साथ ही दूगरे प्राणियों को भी 0 प्रतिनी श्री जिनश्रीजी म. सा० भवसागर से तारने में समर्थ होते हैं। ऐसे सन्तों को समाज भुला नहीं सकता है।
वयोवृद्धा, साध्वी श्रेष्ठा, ज्ञानध्यानमग्ना, ऐसी ही प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री जी का जो प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्रीजी म.सा. ! मैं साशीर्वादपूर्वक "अभिनन्दन ग्रन्थ" प्रकाशित हो रहा है, वह संघ के लिखना चाहती हूँ कि आपका जो गौरवग्रन्थ निकल लिए बड़े ही हर्ष का विषय है।
रहा है, वह अत्यन्त समुचित आयोजन इसलिए है कि यह गौरव केवल आपका नहीं समग्र जैन साध्वी समाज का है । जैन-शासन का है । आपने जिस ढंग
से जप-तप युक्त ऊँचे आध्यात्मिक जीवन को अप10 श्रीजयानन्दजी मुनि
नाया है, जिस एकाग्रवृति से ज्ञान साधना की है
और विशाल श्रावक समाज में विशाल धर्मप्रेरणा (सुशिष्य गणिश्री बुद्धिमुनि जी)
जगायी है वह अनूठी है। भूरि-भूरि प्रशंसायोग्य
है । अतः मैं आपको अंतःकरणपूर्वक शाबासी देती जिन्होंने राजस्थान की राजधानी जयपुर नगर हई आपका अभिनन्दन करती हूँ तथा ऐसी हार्दिक में जन्म लेकर इस धर्मभूमि से धर्मसंस्कार ग्रहण शुभभावना व्यक्त करती हूँ कि आप प्रगति पथ पर करके युवावय में संसार के भौतिक सुखों को तिलां- दीर्घकाल तक अक्षुण्णरूप से आगे बढ़ती रहो। ० जलि देकर प्रभु महावीर स्वामीजी के मार्ग को अंगीकार किया।
जो साधनसम्पन्न परिवार के थे फिर भो जिन्होंने ज्ञानभित वैराग्य द्वारा चारित्रमार्ग अंगीकार करके अपने परिवार, जैन-समाज एवं खरतरगच्छ को गौरवशील किया।
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