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खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ 0 मुनिश्री नगराज जी, डी. लिट् प्रवर्तक श्री महेन्द्रमुनिजी 'कमल'
यह जानकर परम प्रसन्नता हुई कि जैन श्वेता- भारतवर्ष ऋषि, मुनि और सन्तों का देश है। म्बर खरतरगच्छ संघ, जयपुर विरल विदुषी प्रवतिनी जैन, बौद्ध और वैदिक धर्मधाराओं को अखण्ड श्री सज्जनथी जी महाराज साहब का अभिनन्दन बनाये रखने में भारत के ऋषि हमेशा एक रहे हैं। करने जा रहा है और इस प्रसंग पर एक अभिनदन संसार से आँखें मूंदकर गिरि-कन्दराओं में साधना ग्रन्थ का प्रकाशन करने जा रहा है, जिसके प्रका- कर उन्होंने जो पाया उसे जनहित में लुटाया। शन का भार धर्मप्रेमी श्री केसरीचन्दजी लूणिया व संसार से उपरत हो जाने के बाद भी उन्होंने अपने श्रीमती झमकूदेवी लूणिया आदि समस्त लूणिया
स्व-पर-कल्याण व्रत को, साँस के पिछवाड़े छिपी परिवार ने उठाया है । अस्तु, यह एक शुभ काय है। मृत्यु की तरह स्मृति का अमृतबिन्दु माना है जनऔर इसमें सहभागी होने वाले सभा बन्धु पुण्य- जन की मंगल कामना को। स्व-कल्याण कामना में पात्र हैं।
तो हर किसी को आकर्षण हो सकता है मगर जो प्रवर्तिनी साध्वी श्री सज्जनश्री जी ने भारतीय सच्चा सन्त-मन लेकर संयम/प्रवज्या ग्रहण करते हैं इतिहास की धारा में एक नया अध्याय जोड़ा है। वे पर-पीड़ा को स्वपीडा मानते हैं। पर-कल्याण, वेद, उपनिषद, आगम, त्रिपिटक, मनुस्मृति, महा. पर-मंगल और पर-अभ्युदय होता देखते हैं तभी भारत. रामायण आदि संस्कृत के सभा आधार उनका निर्मल सन्त-मन मुस्कराता है। ग्रन्थ पुरुष प्रणीत हैं । नारी-उपेक्षा की इस
श्वेताम्बर जैनधर्म धारा की महाप्रज्ञा महाचिरन्तन शृंखला को अपने वैदुष्य से तोड़ने वाली
सती प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री महाराज श्वेताम्बर नारियों में ये अग्रणी मानी जा सकती हैं। उनकी
जैन खरतरगच्छ की महिला सन्तों में दया, प्रेम, ग्रन्थ रचनाएँ परम मौलिक एवं पुरुष विद्वानों को
करुणा और परोपकार की जीवंत महिला सन्तरत्न भी चुनौती देने वाली हैं।
हैं। ये अपने लिए वज्र के समान होने के साथ प्रवर्तिनी श्री के विषय में क्या लिखू, उनकी
___ अंतर् में खोई, भीगी डूबी आत्मरमणता हैं । अपनी गौरव-गाथा को शब्दों में बाँध पाना भी किसी
पीडा, अपनी असाता को कर्मोदय क्रीडांगण मानतो के द्वारा शक्य नहीं है। ऐसी विरल प्रतिभा
हैं। पिछले अनेक वर्षों से रोग आक्रामी हो आया साध्वीश्री के अभिनन्दन में मैं भी अपना तुच्छ
है, उसे परम समता से झेलती/जीती है। कई वर्ष अर्घ्य चढ़ाता हूँ।
से रोगाक्रमण इन पर प्रभावी है। पर उसे भुलाकर साहित्य सृजन इत्यादि लोक-मंगल के कार्यों का यज्ञ अक्षुण्ण चलाया हुआ है। ____जो साधक-साधिका अपने मन को सन्त बना लेते हैं वे ही साधक परपीड़ा, पर-मंगल में रत रह पाते हैं। उनके लिए स्व-उपसर्ग कर्म क्रीड़ा से अधिक कुछ नहीं होते। ___ महाप्रज्ञा साध्वीमना प्रवर्तिनी सज्जनश्री जी के अभिनंदन ग्रन्थ के प्रकाशन कार्य के लिए सम्बन्धित श्रद्धानिष्ठ गृहस्थों को शताधिक्र साधुवाद देता हूँ-जिन्होंने महासती जी के जीवन व्यक्तित्व को
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