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व्यक्तित्व दर्शन
एक बहु आयामी समग्र व्यक्तित्व प्रवर्तिनी सज्जनश्रीजी महाराज
-आर्या शशिप्रभाश्रीजी (दर्शनाचार्य)
विश्व वाटिका अनेक सुविकसित पुष्पों से आकीर्ण है। भिन्नाकृति के वे सुन्दर पुष्प अपनी मधुर सौरभ विकोण कर कण-कण को सुरभित बना रहे हैं। जिसका पान कर मानव-मन रूपी मधुकर पूर्णतः आप्यायित हो रहा है।
ऐसी ही मृदु मधुर सौरभ से परिव्याप्त एक अवर्णनीय वाटिका है परम श्रद्धया गुरुवर्या प्र. श्री सज्जनश्रीजी म. सा. का जीवन । जिसमें अनेकानेक सुगन्धित गुणपुष्प पूर्णतः सुविकसित है, जिसकी मादक गन्ध मानवरूपी भ्रमरगण को आकर्षित करने में सर्वथा सक्षम है। चूंकि उन पुष्पों में सहज सुगन्ध का वर्षण है, सुन्दरता का उन्मुक्त दर्शन है व चुम्बकीय शक्ति का आकर्षण है। इसीलिए मानव मधुकर सहज, सरल, निःशंक व निःसंकोच रूप से उन पुष्पों के प्रति आकर्षित हो जाते हैं।
यद्यपि पूज्या प्रवर्तिनी महोदया की जीवन वाटिका के उन सम्पूर्ण गुण पुष्पों का आलेखन करना मुझ जैसी सामान्य मन्द बुद्धि के बाहर है तथापि लेखनी आकर्षित कर रही है निम्नांकित कतिपय गुण पुष्पों का वर्णन करने हेतु। (१) विनय-संयमी
जीवन में जिन सद्गुणों की अनिवार्य आवश्यकता है उनमें
विनय एक प्रमुख गुण है। प्रभु महावीर ने भी "बिणय
0 जिसमें नारी सुलभ मृदुता, विनय को धर्म का मूल कहा वत्सलता, सेवा, समर्पण
मूलो धम्मो" की उक्ति से
और सरलता के दर्शन होते हैं तो नर
है। साधना पथ के पथिक के लिए विनय का प्रतिपक्षी स्वभावी साहस, संकल्पशीलता,
अभिमान काले सर्पवत् महान् भयंकर है जिस साधक को इस दूरदर्शिता और विवेक प्रवणता भी
सर्प ने डंस लिया वह साधना की मधुर सुधा का पान नहीं । परिलक्षित है........
कर सकता। अहंकार और साधना एक ही स्थान पर वैसे ।
ही नहीं रह सकते जैसे अन्धकार और प्रकाश । वैनयिक ---------
गुण प्राप्त करने से पूर्व अभिमान के विष बृक्ष को जड़मूल से उखाड़ कर फेंकना होगा।
श्रद्धया गुरुवर्याश्री नम्र ही नहीं अति विनम्र हैं । आपश्री 'पुण्य श्रमणी मंडल' की प्रवर्तिनी है, अनेक उपाधियों से विभूषित हैं तथा आगमज्ञान की सतत् प्रवहमान स्रोतस्विनी हैं । तथापि विनय की प्रतिमूर्ति है। उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार "इंगियागार सम्पन्ना" महान् प्रज्ञावती है। गुरुजनों एवं
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