________________
१५२
खण्ड १ | जीवन ज्योति ग्रन्थ हैं जिनमें से ज्ञान की सुवास निरन्तर आ रही है और अनेकों सुन्दर कृतियाँ हैं जिनकी सुवास हम ले रहे हैं।
जप, तप, संयम तीनों का त्रिमेल आप में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। संयममय जीवन में जप एवं तप न हो तो जीवन खोखला होता है । जप तप बिना ऐसे जीवन का कोई अर्थ नहीं । लेकिन आपने जीवन में जप-तप को पूरा स्थान दिया। इससे संयममय जीवन सुवासित हो गया । नवकार मंत्र की आप परम आराधिका बनकर अपने संयमित जीवन को उजागर कर रही है।
स्वशिष्याओं के अतिरिक्त, समस्त साध्वी वृन्द में आपके प्रति एक निष्ठा, श्रद्धा एवं अनुराग है। जो कोई भी सम्पर्क में आता है, उसके हृदय में आप अपनी सरलता एवं स्वाभाविक स्नेह से स्थान बना लेती हैं।
आपका ज्ञान एवं प्रतिभा बहुमुखी है । ज्योतिष में आपकी अच्छी गति है । प्रतिष्ठा आदि के मुहर्त तो आपने कई बार दिये । शकुन में भी गति है । हस्तरेखा, सामुद्रिक में भी आपकी रुचि रही। संगीत के क्षेत्र में भी कम नहीं । कई राग-रागनियों का आपको बोध है । पूजनादि पढ़ाने का एवं ताल स्वर का अच्छा ज्ञान है, जो कई बार अनुभव में आया । स्वयम् के बनाये हुए स्तवन, गीत, भजन आदि बहत भावपूर्ण हैं । उनमें प्राचीनता एवं अर्वाचीनता के दर्शन स्पष्ट होते हैं।
__शासन देव से यही कामना है कि आप हमारे बीच में युग-युग तक रहकर सत्पथ का मार्गदर्शन करती रहें । आप अपनी सुवास से हमें युग-युग तक सुवासित करती रहें।
0 श्री महावीर जैन श्वेताम्बर मन्दिर
0 श्री मुलतान जैन श्वेताम्बर सभा, जयपुर __ "सर्व-जीव-हिताय" व्यक्तित्व की धनी प्रवर्तिनी महोदया का सम्पूर्ण जीवन आध्यात्मिकता के सुरभित वातावरण में समाज के प्रति जहाँ समर्पित रहा है, वहाँ आपने सदैव अपने को अध्ययन और लेखन की पावनता से स्वयं को जोड़े रखा है।
आपकी रचनाओं ने हमेशा समाज को एक नई दिशा प्रदान की है। सबसे महत्वपूर्ण बात आपके जीवन की एक ही है कि जीवन में साधुत्व के जो अपेक्षित सात्विक गुण होने चाहिए, उन अपेक्षाओं में आप पूर्ण रूप से खरी उतरी हैं, इसलिए आपकी छवि सम्पूर्ण समाज में निर्मल, सस्लता, सहृदयता एवं एकाकी चिन्तक के रूप में सर्व विदित है।
जिनेश्वर भगवंत से प्रार्थना है कि आप शतायु हों और समाज की सतत् प्रेरणा का स्रोत बनी रहें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org