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खण्ड १ | व्यक्तित्व - परिमल : संस्मरण
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आप के जीवन का सहज स्वाभाविक गुण है अध्ययन व अध्यापन । साधक जीवन की क्रियाओं के पश्चात् जीवन का प्रतिक्षण अध्ययन व अध्यापन में व्यतीत होता है । खरतरगच्छ साध्वी समाज में आगमज्ञान में आपका गौरवपूर्ण स्थान है ।
मैं गुरुदेव से प्रार्थना करता हूँ कि आप दीर्घायु बन प्राणिमात्र को मार्गदर्शन देती हुई अपने शुद्धत्व सिद्धत्व को प्राप्त करें । इन्हीं शुभकामनाओं के साथ चरणों में कोटि-कोटि वन्दन अभिनन्दनअभिनन्दन !
D श्री भँवरलाल नाहटा,
कलकत्ता
प. पू. प्रवर्तिनीश्री जी सज्जन श्रीजी महाराज खरतरगच्छ की एक महान विदुषी और प्रभावशाली आर्या रत्न हैं । यों तो आपके दर्शन अनेकशः हुए किन्तु आपके कलकत्ता चातुर्मास में सत्संग का मुझे अच्छा लाभ मिला । आपके प्रभावशाली प्रवचन आत्मलक्षी, तत्त्वज्ञान से परिपूर्ण और ओजस्वी होते थे । आचारांगसूत्र जैसे प्राचीनतम आगम की अध्यात्म रस भरी व्याख्या बड़े-बड़े वक्ताओं के चटपटे व्याख्यानों से मुमुक्षुओं को अधिक प्रिय लगती, भले श्रोताओं की भीड़ कम हो । काकाजी ( श्री अगर चंदजी नाहटा ) के आदेश से मैंने विविध तीर्थ कल्प का अनुवाद पर्यूषण के बाद आरंभ किया, यह ग्रंथ संस्कृत प्राकृत गद्य-पद्य मिश्रित था । प्रतिदिन अनुवाद करता और पूज्य महाराज सा० को दिखा देता । भाषा ज्ञान के अभाव में अटकी हुई गाड़ी को वे अपने विशाल ज्ञान से आगे चला देते । इस तरह से दीपावली से पूर्व संपूर्ण अनुवाद हो गया । आपके बिना साहाय्य के मेरे जैसा अल्पज्ञ स्वल्प समय में कभी अनुवाद नहीं कर पाता । मेरे स्वर्गीय मित्र शिवशंकर शास्त्री आपसे मिलते ही रहते थे । उन्होंने एक निबंध लिखा जो पूरा तो उनका स्वर्गवास हो जाने से न हो सका पर उस पर मेरे नाम से नोट लिखा मिला कि पूज्य सज्जनश्रीजी म० सा० को दिखा दें | वे कहा करते थे कि सज्जन श्रीजी महाराज में गजब का पौरुष और वाणी में अमोघता है ।
साधुओं की कमी से खरतरगच्छ में विदुषी साध्वियों से ही गच्छ रूपी रथ का संचालन होता है । जैन कोकिला शासन स्तंभ श्री विचक्षणश्री जी महाराज द्वारा दीर्घ दृष्टि पूर्वक प्रवर्तिनी पद का चयन आपकी योग्य प्रतिभा का एक सशक्त प्रमाण पत्र है । आप शतायु हों और सुदीर्घ शासन प्रभावन करते रहें, स्वस्थ रहें ऐसी गुरुदेव से प्रार्थना करता हूँ ।"
धनरूपमल नागोरी (एम. ए., बी. एड. साहित्यरत्न; न्याय - मध्यमा)
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कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं थी कि एक परम विदुषी साध्वीजी से ऐसा घनिष्टतम सम्पर्क होगा कि जिसकी सुवास जीवन भर बनी रहेगी । लेकिन ऐसा हुआ । जन्म जन्मान्तर के संस्कारों से अथवा तो संयोगों या पुण्योदय से वे क्षण आये कि सम्पर्क हुआ और आज भी बना हुआ है। तीस इकतीस वर्ष पूर्व जो सुवास दी, वह आज तो द्विगुणित हो गई ।
आप सहज भाव से पूछेंगे कि वह सुवास कहाँ है ? तो उत्तर है - वह सुवास है साध्वी श्री सज्जन श्रीजी म० साहब । आज उनके गुणों रूपी पराग से सारा जैन समाज सुवासित हो रहा है । आपके ज्ञान गंगा का नीर सदैव बहा और बह रहा है। इतना ही नहीं वह ज्ञान गंगा कई ग्रन्थों के रूप में प्रवाहित हुई है। श्री कल्पसूत्र जी, श्री भगवतीसूत्रजी, प्रतिष्ठा कल्प आदि कई ऐसे
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