________________ / साध्वी सुयशाश्रीजी म. (सुशिष्या श्री विचक्षणश्रीजी म. सा.) 'सद्गुरु की कृपा पाकर नर बनता महान् / दिल में भक्ति मानस में, दीपित हो सदज्ञान / शिष्य बीज सम जगत में, है गुरु माली समान / प्रज्ञा जल के योग से, बनता है इन्सान / मनुष्य के जीवन में सद्गुरु की प्राप्ति होना एक महान् उपलब्धि है / 'गुरु' एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति है जो मनुष्य को नर से नारायण और आत्मा को परमात्मा बना देती हैं। गुरु ऐसे श्रेष्ठ कलाकार होते हैं जो एक अनगढ़ ठोकरें खाते हुए जीवन रूपी प्रस्तर को अपने सत् प्रयासों द्वारा जनता में पूजनीय और वन्दनीय बना जाते हैं। अध्यात्मरस निमग्ना, शासन प्रभाविका, आशु कवयित्री प्रवर्तिनी साध्वी श्री सज्जनश्रीजी म. सा. का जीवन एक सच्चे गुरु का कलाकारमय जीवन है / आप सदैव आध्यात्मिक साधना में तल्लीन रहती हैं। आप अपनी शिष्याओं सहित स्वाध्याय करती रहती हैं / मुझे आपके सानिध्य में रहने का जब-जब भी अवसर मिला प्रायः आपको मौन या स्वाध्याय में लीन देखा / पढ़ने पढ़ाने में आप इतने अधिक दत्तचित्त हो जाते हैं कि आपको पता ही नहीं चलता कौन आया और कौन गया। आप अपनी छोटी-छोटी शिष्याओं से व्याख्यान भी दिलवाते रहते हैं / और उन्हें अलग-अलग चौमासा करने के लिए भेजते रहते हैं / जिससे वे जिनशासन की सेवा करती हुई आगे बढ़ती रहे / वस्तुतः आपका जीवन शान्त, सौम्य, मधुर-मुस्कान, ज्ञान की गम्भीरता, विचारों की गरिमा, मृदुलवाणी, स्वभाव में सरलता, विनम्रता, कोमलता से भरपूर (सम्पूर्ण) हैं / आपके प्रवचनों में समन्वय सरलता, और हृदय को स्पर्श करने को क्षमता है, ओज है, समधुर मिठास है जो भी श्रोतागण आपका प्रवचन सुन लेता है वह आत्म विभोर हो उठता है / पूज्य चन्द्रकलाश्रीजी म. सा. मुझे बता रहे थे कि आपने प्रवर्तिनी श्री ज्ञानश्रीजी म. सा. की रुग्णावस्था में काफी लम्बे समय तक तन-मन से लग्नपूर्वक गुरुभक्ति व सेवा की। यह दूसरों के लिए अनुकरणीय व आदर्श रूप है। आप गुरुवर्या प्रवर्तिनी श्री विचक्षणधीजी म. सा. जैसी महान् साध्वी के सान्निध्य में काफी समय तक रहे / जैसे संग में रहो वैसा रंग लग जाता है। क्योंकि जो गुण गुरुवर्या श्री के जीवन में विद्यमान थे वही सम्पूर्ण गुण आपके जीवन में भी हैं। मुझ जैसी अल्पमति पर सदैव कृपा बनाये रखे इसी शुभकामना के साथ / 125 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org