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प्रतिनी सज्जनश्रीजी महाराज के निकटस्थ आत्मीय जनों के अनुभव/संस्मरण एवं प्रेरक प्रसंग
। साध्वीश्री हेमप्रज्ञाश्रीजी म. (सुशिष्या स्व० साध्वी विचक्षणश्रीजी म०)
प्रभावशाली व्यक्तित्व अनेक होते हैं, किन्तु कुछ व्यक्ति अहंकार की प्रेरणा से जगत में अपना प्रभाव स्थापित करते हैं। और कुछ व्यक्तियों का जीवन ही इतना सरल और सहज होता है कि दुनियाँ उनसे स्वयं प्रभावित होती है। सरलता और सहजता जिनके जीवन में विशेष रूप से प्रतिबिम्बित होती है-वे हैं प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्रीजी म. सा.।
जब अन्तरंग में सरलता होती है तब व्यवहार में सहजता होती है, जब अन्तरंग में अहंकार होता है तब व्यवहार में कृत्रिमता होती है। बहुत सी बार नम्रता का बाना धारण कर अहंकार उपस्थित हो जाता है। किन्तु जिनके अन्तःकरण में सरलता होती है उनके व्यवहार में नम्रता और सहजता स्वयमेव होती है।
प्रवतिनीश्रीजी की विशेषता है कि सर्वोच्च पदासीन होने पर भी उनके प्रत्येक व्यवहार में सरलता और निरभिमानता झलकती है ।
एक बार मध्याह्न का समय था। प्रवर्तिनीश्रीजी पाट पर विराजमान थीं। मैं एक ग्रन्थ लेकर उनके सम्मुख उपस्थित हुई और निवेदन किया-पूज्याश्री ! यह विषय समझ में नहीं आ रहा। उन्होंने तुरन्त अपने हाथ की पुस्तक रखकर ग्रन्थ ले लिया और समझाना प्रारम्भ कर दिया। मेरी दृष्टि कभी ग्रन्थ में केन्द्रित हो जाती थी तो कभी उनकी मुखाकृति पर। पाँच मिनिट ही व्यतीत हुए थे कि उन्होंने अपनी दृष्टि ग्रन्थ से हटाई और क्षण भर चुप रहकर कहा- अरे ! तुम खड़ी रहोगी ? बैठ जाओ ! मुझे असमंजस में देखकर उन्होंने पुनः सहजता से कहा-अच्छा ! नीचे बैठने पर ग्रन्थ नहीं देख पाओगी तो कोई बात नहीं इसी पाट पर बैठ जाओ।
मैं संकुचित हो उठी । सर्वोच्च पदासीन, साध्वी वर्ग की संचालिका, प्रवर्तिनो पदविभूषिता साध्वी श्रीजी एक छोटी सी सामान्य सी साध्वी को अपने पाट पर बैठने के लिए कहे। मैं आश्चर्यमुग्ध थी। उन्होंने विषय समझा दिया । मैं ग्रन्थ लेकर अपने स्थान पर जा बैठी। आँखें ग्रन्थ पर टिकी थीं
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