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चरितनायिका के जीवन को नया मोड़ देने वाला बाफना परिवार
[कोटा के बाफना परिवार का संक्षिप्त परिचय ]
पूज्येश्वर बड़े दादा गुरुदेव ने प्रसिद्ध राजा भोज के वंशजों पवार क्षत्रियों को जैन धर्म में दीक्षित कर उन्हें सम्यक्त्वधारी बनाया एवं ओसवाल जाति में गौरवशाली बाफना वंश की स्थापना की।
इस वंश का इतिहास बड़ा समुज्ज्वल है। सबसे प्राचीन इतिहास जैसलमेर के अमर सागर नामक सरोवर एवं उद्यान में लगे हुए एक शिलालेख से मिलता है जो सेठ हिम्मतरायजी बाफना ने लगाया था।
उनके वंश में देवराज जी बाफना, उनके पुत्र गुमानन्दजी बाफना थे। इनके पाँच पुत्र थेबहादुरमलजी, सवाईराम जी, मगनीरामजी, जोरावरमलजी और प्रतापचन्द्र जी । सर्वप्रथम सेठ बहादुरमलजी जैसलमेर से कोटा आये और चम्बल तट पर कुनाड़ी ग्राम में दुकान करके व्यापार करना आरम्भ किया। थोड़े ही दिनों में व्यापार उन्नति के शिखर पर चढ़ गया। आपने करोड़ों की सम्पत्ति उपाजित की । जैसलमेर से अपने लघु भ्राताओं को भी बुला लिया । सब भाइयों ने मिलकर ३५० दुकानें भारतवर्ष के विभिन्न नगरों में स्थापित की और विदेशों-चीन, जापान आदि में भी दुकानें खोलकर वहाँ भी व्यापार करने लगे।
__ पाँचों भाई अलग-अलग होकर व्यापार करने लगे । सुविधा के लिए सेठ बहादुरमलजी ने कोटे में स्थायी निवास करके वहाँ अपना हैड क्वाटर्स बनाया।
सेठ बहादुरमल जी तत्कालीन गवर्नमेंट की देवली एजेंसी के व कई रियासतों के खजांची (टजरर) थे। आपको कोटा राज्य की ओर से चाँदी की छड़ी, अडानी, छत्र, म्याना, पालकी, तामझाम, हाथी-घोड़ा मय सोने के साज के, और कई पट्टे परवाने मिले थे। बूदी से रायमल और टोंक राज्य से खुर्रा गाँव जागीर में प्राप्त हुए थे।
आपकी धार्मिक प्रवृत्ति का और देवगुरु के प्रति महान् श्रद्धा का तो इसी से अनुमान लगाया जा सकता है, कि जहाँ-जहाँ दूकानें थीं वहाँ-वहाँ मन्दिर देरासर बनाये थे और सारा प्रबन्ध दूकान की ओर से होता था, जो आज भी कई स्थानों पर दृष्टिगोचर हो रहा है । सेठ बहादुरमल जी साहब की भावना श्री शत्र जय का संघ निकालने की थी जो पूर्ण न हो सकी और उनके स्वर्गवास के बाद सुयोग्य दत्तक पुत्र श्री दानमल जी साहब ने संघ निकालकर अपने स्वर्गीय पिता की अभिलाषा पूर्ण की। श्री बहादुरमल जी का स्वर्गवास वि० सं० १८६० में हो गया।
__ श्री दानमल जी साहब ने वि० सं० १८९१ में श्री शत्रुजय का विशाल संघ निकाला । इस संघ में वृहत् खरतरगच्छीय श्री मज्जिनमहेन्द्रसूरिजी महाराज आदि १००० साधु-साध्वी एवं यति आदि
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