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खण्ड १ | जीवन ज्योति
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दोनों जगह (गाँव और मिठोड़ावास) त्याग-तप-प्रत्याख्यान आदि खूब हुए । कई बहिनों ने १५-१६-११ के तप किये। तपस्वी बहिनों का बहुमान किया गया। पूजा-प्रभावना-स्वामिवात्सल्य का ठाठ रहा।
अष्टम शताब्दी मनाने का निर्णय भी इसी चातुर्मास में हुआ। मन्दिर बनवाने का निर्णय व गरुदेव की मूर्ति बनाने का आदेश दे दिया गया।
अजमेर निवासी श्रीमानमलजी सुराणा की पुत्री मंजु सुराणा के मानस में वैराग्य बीज ४ वर्ष पहले अंकुरित हो चुका था, पर घरवालों ने स्वीकृति नहीं दी थी। किन्तु सिवाणा चातुर्मास में श्रीमानमलजी सा० अपनी सुपुत्री को लेकर सिवाणा आये और शिक्षा हेतु पास रखने की भावना तथा दीक्षा दिलाने के लिए अजमेर पधारने की विनती की। जिसे गुरुवर्या ने स्वीकार कर ली।
साथ ही जीवाणा निवासी स्व० हस्तीमलजी बागरेचा की सुपुत्री लीलाकुमारी जो वैरागिन के रूप में दो वर्ष से हमारे साथ ही रह रही थी, उसके भी परिवार वालों ने दीक्षा देने की स्वीकृति प्रदान कर दी। __इस प्रकार सिवाणा चातुर्मास सभी प्रकार से सफल रहा ।
पालीताना चातुर्मास पूर्णकर पू० गुरुदेव कांतिसागरजी म.सा० धोलका में नूतन दादाबाड़ी की प्रतिष्ठा कराने हेतु पधारे थे। वहीं वैराग्यवती लीला बागरेचा अपने परिवारीजनों के साथ दीक्षा के अवसर पर पधारने की विनती करने गई। गुरुदेव ने नाकोड़ा में दीक्षा कराने का सुझाव दिया, जिसे परिवार वालों ने स्वीकार कर लिया। पौष शुक्ला १० का दिन दीक्षा दिवस निर्णीत किया गया । तदनुसार गुरुदेव नाकोड़ा पधारे ।
हम लोग सिवाणा से विहार करके पू० श्री चम्पाश्रीजी म. सा. की सेवा में बालोतरा पहुंचे। १५ दिन रुके । पार्श्वनाथ जन्म कल्याणक (पौष वदी १०) को नाकोड़ा पहुँचे गये ।
इसी अवसर पर छत्तीसगढ़ रत्नशिरोमणि पू. मनोहर श्रीजी म. सा. १७ ठाणा व जोधपुर चातुर्मास पूर्ण करके पू. मणिप्रभाश्रीजी आदि ३ ठाणा नाकोड़ा पौष बदी १० के मेले पर पधार गये। उत्साह से मेला मनाया।
जीवाणा श्रीसंघ के आग्रह से गुरुवर्याश्री ने पू. शशिप्रभाश्रीजी म. सा. आदि को जीवाणा विहार कराया व पू. मणिप्रभाजी म. सा. आदि कुछ दिन के लिए सिवाणा, मोकलसर आदि पधार गये । क्योंकि अभी दीक्षा में १५ दिन बाकी थे।
लीला बागरेचा की दीक्षा : सं. २०३७ कुमारी लीला की दीक्षा पर पू. श्री शशिप्रभाजी म. सा., पू. श्री मणिप्रभाजी म. सा. आदि पुनः नाकोड़ा पधार गये। पू. मनोहरश्रीजी म. सा. और हम सब इस तरह लगभग ३०-३५ ठाणा थे। पू० गुरुदेव की निश्रा में पौष शुक्ला १० को दीक्षा सम्पन्न हुई । कुमारी लीला को दीक्षोपरान्त नाम दिया गया-शुभदर्शनाजी और पूज्या गुरुवर्या की शिष्या घोषित की गई ।
पू. गुरुदेव ब्यावर की ओर विहार कर गये, क्योंकि उनका दिल्ली चातुर्मास निश्चित हो चुका था और उन्हें अजमेर-जयपुर होते हुए दिल्ली जाना था।
अजमेर में मंजु सुराणा की दीक्षा : सं. २०३८ मंजु सुराणा की दीक्षा हेतु हम लोगों ने अजमेर की ओर विहार किया तथा पू. मणिप्रभाजी
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