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जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी का आ गया। आदेश था-आगामी चातुर्मास पावापुरी में करना है और भगवान का २५वीं निर्वाण शताब्दी समारोह धूमधाम से मनाना है। राष्ट्रसंत कवि अमरमुनिजी म. एवं तेरापंथी मुनिश्री रूपचंद जी म. तथा साध्वी श्री सुमतिकुवरजी म., दर्शनाचार्या श्री चन्दनाजी म. आदि भी इस शुभावसर पर पधार रहे हैं और हम लोग भी शीध्र ही वहाँ पहुँचेंगे। श्रद्धय गुरुदेव के इस आदेश को हमने शिरोधार्य किया ।
पुनः पावापुरी की ओर प्रस्थान हमारे कदम नूतन दीक्षिता साध्वियों के साथ खड्गपुर से पावापुरी की ओर बढ़े। मार्ग में पुरुलिया, जमशेदपूर, विष्टिपुर आदि स्थानों में जहाँ जिन मन्दिर हैं और श्रद्धालु श्रावकों के घर हैं, वहाँ दो-दो, तीन-तीन दिन रुकते-ठहरते हुए, महोदा, झरिया, कतरासगढ़ होते हुए चैत्र सुदी ५ को निमियाघाट से शिखरजी पहुंचे।
हम लोगों को आशातीत प्रसन्नता हुई क्योंकि शिखरजी की यात्रा के पूनः संयोग की आशा ही नहीं थी हमें। शिखरजी में ही शाश्वती नवपद ओली का आराधन किया। वैशाख बदी ३ को शिखर जी से विहार कर कोडरमा होते पावापुरी पहुँचे । लगभग ८ दिन वहाँ रहे । विचार किया अभी तो चातुर्मास में बहुत समय है । एक वार पुनः राजगृह हो आयें। विचार के साथ ही पग बढ़े और दूसरे ही दिन शोर्टकट से राजगृह जा पहुँचे ।
___ महासती श्री सुमतिकुंवरजी एवं श्री चन्दनाजी म. वीरायतन के लिए यही विराजी थीं। पंचम पहाड़ वैभारगिरि की तलहटी में वीरायतन के लिए स्थान (जगह) लिया जा चुका था, दोनों साध्वीजी म. की निश्रा में शिलान्यास हो चुका था, निर्माण कार्य चल रहा था, राष्ट्रसन्त कवि अमरमुनिजी म. भी पधारने वाले थे।
वीरायतन का निर्माण कवि अमरमुनिजी म. और साध्वी चन्दनाश्री जी म. की अनोखी और सामयिक सूझ-बूझ का परिणाम है। वीर शासन के प्रति उन्होंने इस निर्माण कार्य से अपनी श्रद्धाभक्ति का परिचय दिया है। यहाँ ऐसा निर्माण ऐतिहासिकता को सुरक्षित रखने के लिये आवश्यक भी था।
__ हम लोग वीरायतन (प्राचीन ओफिस-जहाँ साध्वीजी म. स्वयं विराजती थीं और भोजनशाला भी थी) जाते रहते थे और साध्वी चन्दनाजी भी आती रहती थीं। साध्वीजी बहुत ही मिलनसार हैं। हमारी भेंट पहले अजमेर और दूसरी बार कलकत्ता दादाबाड़ी में हो चुकी थी। तभी से हम उनकी सहृदयता और मिलनसारिता से परिचित थों।
राष्ट्रसन्त कवि अमरमुनिजी म० के राजगृह प्रवेश पर निमन्त्रित होकर हम भी गये थे, नालन्दा बौद्ध संस्थान के कई विद्वान, जापान के फ्यूजी गुरुजी तथा प्रसिद्ध जैन विद्वान नथमलजी टांटिया (जो उस समय नालन्दा के प्रोफेसर और वर्तमान में जैन विश्वभारती के अध्यक्ष हैं) पधारे थे।
कविजी म० के स्वागत में सभा का आयोजन किया गया। सभी विद्वानों के भाषण हुए । गुरुवर्याश्री ने भारत के ऐतिहासिक तीर्थस्थलों का इतने सुन्दर ढंग से विवरण-विवेचन प्रस्तुत किया कि सभी ने उनकी मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की।
कुछ दिन पश्चात पालीताना से विहार कर श्रद्धय अनुयोगाचार्य श्री कांतिसागरजी म.सा० पू० दर्शनसागरजी म.सा० व बालमुनि मणिप्रभसागरजी भी राजगृही की सीमा में तीसरे पहाड़ की तलहटी
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