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(जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी "आप लोग तो सिर्फ रुपये पैसे का ही चन्दा कर रहे हैं लेकिन मैं महाराज साहब के चरणों में अपना चाँद का टुकड़ा समर्पित करती हूँ। यदि वर्तमान के समान भविष्य में भी इसको भावना बनी रही तो अवश्य ही दीक्षा दिलवाऊँगी।"
इन उद्गारों को सुनकर सभी धन्य-धन्य कह उठे। हम लोग भी चकित रह गये, क्योंकि इस सम्बन्ध में कभी कोई बात ही हमारे सामने नहीं आई। न कमल ने ही ऐसी कोई भावना हमारे सामने व्यक्त की और न उसकी माता ने ही।
हमने इस सम्बन्ध में कमल की माँ से कहा-आपने इतना बड़ा निर्णय अचानक ही कैसे ले लिया और संघ के समक्ष प्रकट (declare) भी कर दिया ?
तब उन्होंने कहा- आपको पहले ही बता देते तो ठीक रहता। बिना बताये ही डिक्लेयर कर दिया, यह हमारी भूल हुई। हम क्षमाप्रार्थी हैं। लेकिन जब से आप पधारे हैं और आपके ओजस्वी प्रवचन इसने सुने हैं तभी से दीक्षा की जिद कर रही है। बहुत समझाया, प्रलोभन भी दिये, पर मानती ही नहीं, दीक्षा की जिद पर अड़ी हुई है। अब आप इसे अध्ययन करवाइये। जब दीक्षा के योग्य हो जायगी तब इसे आपकी निश्रा में दीक्षा दिलवायेंगे।
यह कहकर कमल उन्होंने हम लोगों के सुपर्द कर दी।
यद्यपि पुनः कलकत्ता जाने का हमारा विचार नहीं था किन्तु वहाँ से बार-बार विनतियाँ आ रही थीं और खड्गपुर में नूतन मन्दिर में प्रतिष्ठा हेतु मूर्तियों के मंगल प्रवेश के शुभावसर पर तो कलकत्ता के श्रावक खड्गपुर में आ ही गये । उनमें से मुख्य थे-श्री ताजमलजी सा. बोथरा, भँवरलालजी सा. नाहटा, हीरालालजी सा. लूनिया, जतनमलजी सा. नाहटा और ज्ञानचन्दजी सा. लूणावत । सभी ने परजोर विनती की । यहाँ तक कह दिया कि जब तक आप कलकत्ता चातुर्मास की स्वीकृति नहीं देंगी तब तक न हम लोग मुंह में पानी डालेंगे और न ही यहाँ से उठेंगे।
इस श्रद्धा भक्ति भरे आग्रह और भविष्य में लाभ देखकर कलकत्ता चातुर्मास की स्वीकृति गरुवर्याधी ने दे दी।
शाश्वती ओली निकट थी । आपश्री ने चैत्री पूनम के लिए प्रेरणा दी तो कितनों ने ही सामूहिक आयम्बिल में नाम लिखाये । गुरुवर्याधी ने श्रीपाल चरित्र का मधुर भावपूर्ण शैली में वाचन किया। नवपद ओली की सबने आराधना की।
धार्मिक ज्ञान सीखने हेतु यहाँ की कई लड़कियाँ हमारे पास आती थीं। उनमें कमल की दोनों बडी बहनें निर्मला और हीरामणि भी थीं। निर्मला की तो सगाई की बातें चल रही थीं, पर इसने भी दीक्षा लेने की भावना व्यक्त की, हीरामणि ने भी की, अन्य कई लड़कियों ने भी की परन्तु उस समय योग नहीं नहीं था, इसलिए उनकी भावना सफल न हो सकी।
पूनः कलकत्ता की ओर प्रस्थान और सं. २०३० का कलकत्ता चातुर्मास
संभवतः कलकत्ता के श्रावकों के मन में सन्देह था अतः कलकता की ओर हमें प्रस्थान करवा के ही लौटे।
कोयलाघाट में खड्गपुर के कई लोग आये थे ।
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