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जीवन ज्योति: साध्वी शशिप्रभाश्रीजी
चन्दा भी शुरू हो गये । ५-७ लाख की राशि एकत्र हो गई। कई स्थान देखे गये किन्तु कलकत्ता जैसी घनी बस्ती वाले नगर में स्थान का मिलना असंभव सा ही है। एक बात और भी थी वह यह कि जैन भवन या बड़े मन्दिर के पास ही कोई सेपरेट (Seperate) जगह मिल जाय, वह न मिल सकी । योजना सफल न हो सकी ।
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श्रावण की बरसात की झड़ियों के साथ ही तपस्याओं की झड़ी भी लग गई । पूर्णाहुति पर पूजा और स्वधर्मी वात्सल्य का भी खूब ठाठ रहा । अक्षय निधि तप ( इसमें निरंतर १५ दिन तक एकासने व अन्तिम संवत्सरी के दिन उपवास किया जाता है, में भी लड़कियों ( अब तरुणियाँ) बहुओं, स्त्रियों की संख्या अधिक रही । क्रिया स्थापना आदि सामूहिक रूप से ही जैन भवन में तथा एकासना का कार्यक्रम श्री मोतीचन्दजी नखत की धर्मशाला (जो जैन भवन के बाजू में ही थी) होते थे ।
व्याख्यान में श्रोताओं की संख्या लगातार बढ़ रही थी । संवत्सरी के दिन तो तीसरी मंजिल तक श्रोता बैठे थे । ५७ हजार व्यक्तियों की उपस्थिति थी, अतः माईक की व्यवस्था भी थी ।
गुरुवर्याश्री के अगाध ज्ञान और तत्त्व विवेचन शैली से कलकत्तावासी बहुत प्रभावित हुए । तत्त्वज्ञ विद्वान श्रीमान भँवरलालजी नाहटा, श्री जिनप्रभसूरिरचित विविध तीर्थ कल्प ( यह ग्रन्थ प्राकृत तथा संस्कृत दोनों भाषाओं में है) का हिन्दी अनुवाद कर रहे थे । जहाँ उन्हें कठिनता आती या विषय स्पष्ट नहीं होता वहाँ गुरुवर्याश्री से पूछते और स्पष्ट व समुचित समाधान पाकर हर्षित तुष्टित होते । इस प्रकार कलकत्ता चातुर्मास पूर्ण सफल रहा ।
कार्तिक पूर्णिमा की शोभायात्रा
कलकत्ता की कार्तिकी पूर्णिमा की शोभायात्रा विश्वप्रसिद्ध है । यह चातुर्मास पूर्ण होने पर निकाली जाती है । लगभग साढ़े तीन माईल लम्बी शोभा यात्रा को मारवाड़ी, बंगाली तथा अन्य सभी बड़े चाव से देखते हैं । जैन समाज तो भाव विभोर होते ही हैं, अन्य सम्प्रदाय वाले भी प्रभावित होते हैं, मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हैं ।
शोभायात्रा में सबसे आगे इन्द्र ध्वज चलता है, जिसकी ऊँचाई इतनी होती है कि ट्राम्स के तारों के ज्वाइंट्स भी खोलने पड़ जाते हैं । सुविधा, सुरक्षा और सुव्यवस्था के लिए पुलिस साथ रहती है । यह शोभा यात्रा बड़े मन्दिर से शुरू होकर राय साहब के बगीचे (बद्रीदास टेम्पल) तक आती है और पूजा स्वधर्मी वात्सल्य के कार्यक्रम के साथ परिसमाप्त हो जाती है ।
हमारे चातुर्मास के साथ ही तपागच्छ में आचार्य त्रिपुटी - श्री जयन्तसूरि, विक्रम सूरि और tataसूरि तीनों आचार्यों का तथा सर्वोदया श्री जी म० सा० वाचंयभाश्री जी म०सा० आदि साध्वीजी का चातुर्मास भवानीपुर, जो कलकत्ते का ही एक उपनगर है, उसमें था । यहाँ जैनों के अनेक घर हैं व बड़ा शिखरबद्ध विशाल मंदिर है और साथ ही attached धर्मशाला भी है, जो ४-५ मंजिल की है और साधु-साध्वियों के ठहरने के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं ।
चातुर्मास पूर्ण कर हम लोगों ने भी भवानीपुर, बालीगंज, लेकरोड आदि में स्थित मंदिरों के दर्शन किये और फिर खड़गपुर की ओर कदम बढ़ाने का निर्णय किया। उसका कारण था कि भूतपूर्व प्र० स्व० पूज्या श्री ज्ञानश्री जी म० सा० के संसार पक्षीय भतीजे फलोदी निवासी श्रीमान चाँदमलजी स।० गोलेच्छा व्यापार धन्धे के कारण खडगपुर ही रहते थे । वे जब भी पूज्याश्री के दर्शनार्थ जयपुर आते तभी खडगपुर पधारने की विनती करते थे ।
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