________________
जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी
पालीताना में उसी दिन (चैत्र बदी ५ को) पू. गुरुदेव श्री कांतिसागरजी की निथा में दो भ्रातृ युगल श्री सुयशप्रभसागरजी व विमलप्रभसागरजी की दीक्षा हुई और दोनों ने श्री अनुयोगाचार्यजी का शिष्यत्व ग्रहण किया।
इधर जयपुर विराजित पू. प्र. महोदया विचक्षणश्रीजी म. सा. ने आदेश प्रेषित किया कि आप जैसी विद्वद्वर्या के ज्ञान का लाभ अन्य क्षेत्रों को भी मिलना चाहिये । अतः आगामी चातुर्मास सांचोर या जामनगर करना उचित है। आदेश के साथ ही जामनगर संघ की आग्रहपूर्ण विनती लेकर मुख्य-मुख्य श्रावक आ गये। पूज्या गुरुवर्या ने तत्काल स्वीकृति दे दी।
गुरुवर्याश्री ने जेष्ठ मास की अंगारे बरसाने वाली गर्मी में जामनगर की ओर प्रस्थान कर दिया।
जामनगर चातुर्मास : सं. २०३४ यह नगर सौराष्ट्र की सीमा पर है । यहाँ अनेक शिखरबद्ध जिनमन्दिरों में भव्य मोहक प्रतिमाएँ विराजमान हैं, ऐसी भव्य नगरी में सं. १६६२ में पू. प्र. श्री ज्ञानश्रीजी म. सा. उपयोगश्रीजी म. सा. आदि का शानदार चातुर्मास हो चुका था। गुरुवर्याश्री के पधारने से लोगों में अतीत की स्मृतियाँ ताजा हो गई। बड़े ही धूमधाम से आपका नगर-प्रवेश हुआ। मन्दिरों के दर्शनकर आपश्री धर्मनाथ मन्दिर से संलग्न उपाथय में पधारी। धर्मदेशनारूप मांगलिक प्रवचन सुन्दर गुजराती भाषा में श्रवण कराया। श्रोता चमत्कृत रह गये कि मारवाड़ी-राजस्थानी साध्वीजी का गुजराती भाषा पर ऐसा अधिकार ।
फिर तो चार महीने तक गुरुवर्याश्री के मुख से गुजराती भाषा में प्रवचन पीयूष की स्रोतस्विनी बहती रही।
तथ्य यह है कि गुरुवर्याश्री का मारवाड़ी, गुजराती, हिन्दी, प्राकृत, संस्कृत सभी भाषाओं पर पूर्ण अधिकार है।
चातुर्मास में बसनजी भाई (आप गुरुवर्या की सेवा में रहते थे) ने मासक्षमण किया, बहनों ने भी पंचरंगी, शंखेश्वरजी के अट्ठम आदि अनेक तपस्याएँ कीं। कई बहिनों ने सामायिक-प्रतिक्रमण, प्रकरण, कर्मग्रन्थादि सीखे । सभी का चार महीने तक धर्मोत्साह बना रहा।
यद्यपि यहाँ खरतरगच्छ के श्रावकों के घर कम है पर जितने भी हैं, उनमें धर्म उत्साह बहुत है।
तत्रस्थ विराजित अंचलगच्छीय साध्वीजी गुरुवर्याश्री के आगमज्ञान से प्रभावित होकर आचारांग की वाचना लेने आईं। गुरुवर्याश्री ने आचारांग के एक-एक सूत्र का ऐसा सारगर्भित विवेचन किया कि वे दंग रह गयीं। नित्य आने लगीं। गुरुवर्याश्री भी बिना भेदभाव के ज्ञान की वर्षा करने लगीं।
जामनगर से कच्छ समीप ही है अतः गुरुवर्याश्री के वहाँ जाने के भाव थे । पर जयपुर विराजित प. प्र. महोदया के, पूर्व असातावेदनीय कर्मोदयवश, ब्रस्ट' (छाती) में अचानक ही कैंसर की गाँठ हो गयी। जयपुर से पत्र द्वारा इस विषय के समाचार जानकर चिन्ता हुई, जयपुर जाने का निर्णय ले लिया। जामनगर से विहार करके मोरवी, ध्रांगध्रा आदि होते हुए शंखेश्वर आ पहुंचे, वह दिन पौष कृष्णा १० भ. पार्श्वनाथ का जन्म दिवस था।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org