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खण्ड १ | जीवन ज्योति की विशेषता यह थी कि यह चातुर्मास अपनी जिम्मेदारी पर किया। क्योंकि अब तक के सभी चातुर्मास पू. प्रवर्तिनो श्री ज्ञानश्रीजो महाराज के आदेश से हुए अथवा उनको निथा में हुए।
वीरबालिका विद्यालय की ओर से चरितनायिका जी की दीक्षा रजत जयन्ती एवं विदाई समारोह-चरितनायिकाजी को भागवती दीक्षा ग्रहण किये हुए २५ वर्ष हो रहे थे । इस उपलक्ष्य में वीर बालिका विद्यालय ने कार्तिक सुदी ५ (स्कूल का स्थापना दिवस) को आपश्री की दीक्षा रजत जयन्ती मनाई । आपके व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए भावाभिसिंचित अभिनन्दन पत्र भेंट दिया गया।
जयपुर से विदाई चातुर्मास की समाप्ति पर जयपुर श्रीसंघ ने 'शिवजीराम भवन' में विदाई समारोह का आयोजन किया। जिसमें सैंकड़ों व्यक्ति उपस्थित थे। प्रमुख व्यक्तियों ने चरितनायिकाजी के २५ वर्षीय निर्दोष संयमी जीवन पर प्रकाश डाला, आपके विशिष्ट गुणों का वर्णन किया और सद्कामना की कि जयपूर का यह कोहिनूर हीरा दशों दिशाओं में अपनी भव्य आभा विकीर्ण करता रहे।
मंत्रिवरथी कोठारीजी ने संघ की ओर से कमली ओढ़ाकर आपका बहुमान किया, सेठश्री कल्याणमलजी गोलेच्छा ने भी आपको कमली ओढ़ाई । कमला देवी बांठिया ने अपनी सुरीली बुलन्द आवाज में विदाई गीतिका गाई जिसके भाव इतने मार्मिक थे कि उपस्थित जन समूह के नयन सजल हो उठे।
अन्त में सभी के श्रद्धा सुमन स्वीकृत करते हुए आपश्री ने भावोद्गार व्यक्त किये-"इतने समय मैं जयपुर में रही हूँ, किसी प्रकार का अविनय हुआ हो, कटुवचन निकल गया हो, किसी का दिल दुखाया हो तो हृदय से क्षमा प्रार्थिनी हूँ।" ..
तदुपरान्त विदाई समारोह सम्पन्न हो गया।
वहाँ से आप अपनी गरु-बहनों (शीतलश्रीजी, जिनेन्द्रश्रीजी) तथा शिष्याओं (शशिप्रभाजी, प्रियदर्शनाजी) के साथ रामलीला मैदान की ओर पधारी । सैंकड़ों व्यक्ति साथ थे । जयघोषों से धरागमन गूंज रहे थे । रामलीला मैदान में आपने सबको मांगलिक सुनाया। सभी भरे हृदय लिये हुए अपनेअपने गन्तव्य स्थान की ओर चले गये और आपने अपने कदम अजमेर होते हुए नाकोडाजी की ओर बढ़ा दिये । नाकोड़ा जाने का कारण यह था कि पू० अनुयोगाचार्य श्री कान्तिसागरजी म. सा. व पू० श्री दर्शनसागरजी म. सा. की निश्रा में बाड़मेर संघ की ओर से उपधान हो रहा था तथा उनकी आज्ञानसार नूतन साध्वी प्रियदर्शनाजी की बड़ी दीक्षा भी वहीं करवानी थी।
मार्गस्थ अजमेर, ब्यावर, पाली, जोधपुर आदि क्षेत्रों को स्पर्शते हुए तीर्थ शिरोमणि नाकोड़ा के दर्शनार्थ पहुँचे । वहीं वि. सं. २०२४ की माघ कृष्णा एकादशी को उपधान की माला के दिन बड़े ठाठबाट से बड़ी दीक्षा संपन्न हुई नूतन साध्वीश्री प्रियदर्शनाजी म. सा. की।
इस अवसर पर अनेक क्षेत्रों के लोग आये हुए थे । अन्य लोगों से आपकी (चरितनायिकाजी की) प्रशंसा सुनकर और प्रत्यक्ष आपके व्याख्यान आदि से प्रभावित होकर अपने-अपने क्षेत्र में चातुर्मास की आग्रह भरी बिनती करने लगे। किन्तु आपश्री ने बीकानेर चातुर्मास की विनती स्वीकारी। उसका एक कारण यह भी था कि श्री शशिप्रभाजी को 'शास्त्री' की परीक्षा दिलवानी थी और परीक्षा केन्द्र बीकानेर ही था।
नाकोड़ा से माघ शुक्ला ३ के दिन विहार करके जोधपुर पधार गई, अपनी शिष्य-मण्डली के साथ । अनुयोगाचार्यजी भी जोधपुर पधार गये । खण्ड १/७
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