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जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी एक और भी वस्तु दृष्टि पथ में आई । बड़ी चमत्कारी। वह है-बड़े दादा जिनदत्त सूरीश्वर जी की चादर । अग्नि संस्कार के समय यह चादर जली नहीं, अग्नि से अप्रभावित रही और आज ६०० वर्ष बाद भी जैसी की तैसी है, न तो मौसम का ही कोई प्रभाव है इस चादर पर और न काल का ही। यह सब पूज्य दादा जिनदत्त सूरीश्वर के निर्मल तप-त्याग-साधना का प्रभाव है, जो उनकी चादर के रूप में स्पष्ट दिखाई दे रहा है ।
इन सब वस्तुओं को देखते हुए आप आठ दिवस तक रुके ।
आठ दिन बाद आप सब समीपस्थ महान तीर्थ लौद्रवपुर पधारे। वहाँ सहस्रफणा पार्श्वनाथ प्रभु के बिम्ब के दर्शन कर हृदय आह्लाद से भर गया। दर्शन-वन्दन कर नीचे उतर रहे थे तो एक और चमत्कार से साक्षात्कार हो गया।
हुआ यह कि मन्दिर के तोरणद्वार पर लटकते हुए अधिष्ठायक देव की पूछ पू. श्री शशिप्रभाजी म. सा. की कमली पर आ गयी। भारीपन-सा लगा तो सबने मुड़कर देखा तो पूछ लटकती दिखाई दी। भय मिश्रित आश्चर्य के भाव उमड़ने लगे।
इतने में पुजारीजी आ गये। सभी ने एक-डेढ़ मिनट तक अच्छी तरह दर्शन किये। पुजारी चकित स्वर में कहने लगे--महाराज साहब ! आप बहुत भाग्यशालिनी हैं कि अनायास ही इतनी देर तक दर्शन दिये अन्यथा अनेकों प्रयत्न करने पर भी दर्शन नहीं देते।
इस घटना से प्रगट हो जाता है कि सच्चे त्यागी-तपस्वी श्रमण-श्रमणियों को अनायास ही देवदर्शन हो जाता है।
वहाँ से बिहार करके अमरसर के मन्दिर के दर्शन किये। पुनः जैसलमेर पधारीं । वहाँ से बाड़मेर की ओर प्रस्थान किया । पू. चरितनायिकाजी की कमर में वायु का दर्द हो गया था, वहाँ आयुर्वेदिक इलाज कराया। १५ दिन में आरोग्य लाभ करके नाकोड़ा तीर्थ की यात्रा करते हुए जोधपुर आये।
आपके आगमन से जोधपुर की जनता अति प्रसन्न हुई, व्याख्यान का आग्रह किया। चरितनायिकाजी ने जोशीला व्याख्यान दिया। व्याख्यान से प्रभावित होकर जनता ने चातुर्मास का आग्रह किया। लेकिन उससे पहले ही पू. श्री गणाधीश म. सा., अनुयोगाचार्य गुरुदेव व पू. श्री जैन कोकिला का आदेश आ चुका था कि इधर-उधर कहीं चातुर्मास न करके जयपुर होते हुए दिल्ली पधारो।
. अतः जयपुर की ओर कदम बढ़ाये । कापरड़ा, बिलाडा, जैतारण होते हुए ब्यावर पहुँचे । एक दिन ब्यावर रुके। वहीं पर श्रीमान् लालचन्दजी सा. वैराठी जो मालपुरा के व्यवस्थापक थे, मालपुरा मेले में पधारने के लिये विनती करने आये, चूँ कि मेला निकट ही था। मालपुरा तो आपश्री को भी जाना ही था, सहज संयोग मिल रहा था, स्वीकृति दे दी। ब्यावर से मांगलियावास पधारे क्योंकि वहीं से मालपुरा के लिये मार्ग जाता था। संयोग से वहीं तेजबाई मेहता जो चरितनायिकाजी की शिष्या बनने की इच्छुक थीं, आ गई और मालपुरा तक साथ रहीं। गुरुदेव के दर्शनों की तीव्र उत्कण्ठा से सभी लोग शीघ्र ही मालपुरा पहुँच गये।।
___ मालपुरा गुरुदेव जिनकुशलसूरीश्वर का न जन्म-स्थान है और न स्वर्गगमन स्थान; आपेतु एक चमत्कारिक स्थान है। यहाँ दादा गुरुदेव ने एक भक्त को दर्शन दिये, उसके बाद कई भक्तों को दर्शन दिये। जिस शिला पर खड़े होकर दादा गुरुदेव ने साक्षात् दर्शन दिये, वह आज चरण के रूप में है।
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