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जीवन ज्योति: साध्वी शशिप्रभाश्री
प्रवर्तिनीजी के वात्सल्य और आत्मीयता भरे आदेश को स्वीकार करके चातुर्मास हेतु वहीं रह गईं । इसमें संघ का आग्रह भरी विनती भी एक कारण रहा।
चरितनायिकाजी व्याख्यान - भार से मुक्त थीं । अतः पू. प्रवर्तिनीज, श्री उपयोगश्रीजी और जैन लाजी की सत्प्रेरणा से 'पुण्य जीवन ज्योति' का लेखन कार्य आपने प्रारम्भ किया । आपका यह लेखन कार्य ५०० पृष्ठों के एक अनूठे वृहत् सचित्र ग्रन्थ रूप में जनता के समक्ष आया जो अपने आप में एक इतिहास संजोए हुए हैं। इस ऐतिहासिक ग्रन्थ में श्रमणी वृन्द की गौरवपूर्ण गाथा के साथ-साथ नारी जीवन का महत्व भी वर्णित हुआ है ।
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आपकी परिष्कृत और परिमार्जित लेखनी से समुद्भूत यह एक ऐसो पुष्प मंजूषा है जिसमें विभिन्न आकृतियों के सुरभित स्वर - सुमन अपनी सुगन्धि विकीर्ण कर रहे हैं ।
वस्तुतः यह ग्रन्थरत्न आपके गम्भीर और तलस्पर्शी अध्ययन तथा प्रत्युत्पन्न मेधा का परिचायक है ।
संवत् २०१५ का चातुर्मास सानन्द सम्पूर्ण हुआ ।
पूज्या विचक्षणश्रीजी म. सा. का सं. २०१६ का चातुर्मास जयपुर में था और टोंक संघ के आग्रह के कारण आपश्री का चातुर्मास टोंक निश्चित हो चुका था । टोंक के लिए चातुर्मासार्थ आपने जयपुर से विहार भी किया, प्रथम मंजिल सांगानेर तक पधार भी गये लेकिन मन उखड़ रहा था, पाँव आगे जाने को तैयार न थे, कुछ अनहोनी घटित होने की आशंका बार-बार चित्त को उद्विग्न बना रही थी । अतः वापिस जयपुर लौट आईं, टोंक संघ को ना करवादी ।
वज्रपात - अप्रत्याशित विरह परमोपकारिणी उपयोग श्रीजी का
जयपुर में चातुर्मास सुन्दर ढंग से चल रहा था । कार्तिक माह में पू. प्रवर्तिनी ज्ञानश्रीजी म.सा. के स्वास्थ्य में कुछ गड़बड़ी हुई । आयुर्वेदिक औषधियाँ चल रही थीं पर कोई विशेष लाभ नहीं हो रहा था, स्वास्थ्य गिरता ही जा रहा था। गुरुवर्या की अस्वस्थ दशा से आप चिन्तित थीं ।
इधर उपयोग श्रीजी म. सा. के पाँव के अँगूठे में ठोकर लग जाने से अँगूठा पक गया, दर्द होने लगा, उपचार से भी कोई लाभ न हुआ, पीव पड़ गई और रिसने लगी। तब जयपुर की प्रसिद्ध लेडी डाक्टर चन्द्रकांता को बुलाया गया ।
कार्तिक कृष्णा ३ का दिन था । सन्ध्या का समय था । सभी का चौविहर का समय था । पू. विचक्षणश्रीजी प्रतिदिन की भाँति गोचरी करके दादाबाड़ी पधार गये थे ।
डाक्टर आईं। पू. प्रवर्तिनी महोदया को देखकर लौट रही थीं कि उपयोगश्रीजी म. सा, ने आवाज देकर बुलाया और कहा- डाक्टर साहब देखिए । मेरा अँगूठा पक गया है । १५-२० दिन हो गये, पीव रिसती रहती है, बन्द होती ही नही ।
पूज्यवर्या ने पट्टी खोली तो डाक्टर साहब ने देखकर कहा - केस सीरियस हो गया है, इंजेक्शन afaar ठीक नहीं होगा । आपको पेनिसिलिन का इंजेक्शन लगा दूँ, जल्दी आराम आ जायेगा ।
पूज्यावर्या ने चरितनायिका जी से इंजेक्शन लगवाने के बारे में पूछा तो उन्होंने सहमति व्यक्ति कर दी, भावना यही थी शीघ्र आराम हो गया । लेकिन कौन जानता था कि ऐसा आराम हो जायेगा कि यह शरीर ही छूट जायेगा, जब हंस ही चला जायेगा । तो बीमारी किसे होगी ? और कौन दुख का वेदन करेगा |
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