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उपोद्घात
सूत्रपरिचय विश्व के समस्त प्राणी सुख के अभिलाषी हैं, कोई भी प्राणी दुःख नहीं चाहता । परन्तु समस्त प्राणियों की, विशेषतः मानव की प्रवृत्तियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है, कि मनुष्य प्रायः इन्द्रियों और मन के विषयों तथा पदार्थों में सुख मानकर प्रवृत्ति करता है । नतीजा यह होता है, कि इन्द्रियविषयों, मनोविषयों तथा पदार्थों से होने वाले क्षणिक सुख के नष्ट होते ही पुनः दुःख की परम्परा चल पड़ती है, सुख और शान्ति दूरातिदूर होती जाती है। अतः यह प्रश्न होना स्वाभाविक है, कि सुख के साधनों और शान्ति के मार्ग को अपनाने पर भी दुःख और अशान्ति क्यों मिलती है ? यदि अपनाए हुए ये साधन और उपाय दुःख और अशान्ति के जनक हैं, तो वास्तविक और स्थायी सुख-शान्ति के साधन और उपाय कौन-कौन से हैं ? और दुःखों के उत्पन्न करने, बढ़ाने और दुःखजनित अशुभ फल के मुख्य कारण कौन-कौन-से हैं ? जीवन के ये और इन सरीखे अन्य अनेक ज्वलन्त प्रश्नों की व्याख्या को ही प्रश्नव्याकरण सूत्र की पृष्ठभूमि समझना चाहिये ।
___ क्योंकि प्रश्नव्याकरण सूत्र में वर्णित पांच आश्रवद्वार और पांच संवरद्वार जीवन के इन्हीं मूल प्रश्नों के उत्तर हैं। पांच आश्रव जीवन में दु:खों को बढ़ाने वाले हैं। पांच आश्रवों के फलस्वरूप जीव नाना प्रकार के शुभाशुभ कर्मों का बंध करता है, और उनके कारण बार-बार विविध शुभाशुभ गतियों और योनियों में परिभ्रमण करके दुःख उठाता है । दूसरी ओर पांच संवर जीवन में स्थायी सुख को बढ़ाने वाले हैं । संवर की विधिवत् साधना-आराधना करके मनुष्य मोक्षसुख को प्राप्त कर लेता है।
इसलिए जीवन के सुखदुःख से सम्बन्धित इन ज्वलन्त प्रश्नों के समाधान के रूप में जो व्याख्या की गई है, उसमें ही वर्तमान में 'प्रश्नव्याकरणसूत्र' नाम की सार्थकता समझनी चाहिये।