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लिपि - ब्राह्मी, ई०पू० तृतीय शती
1. देवानं पियस असोकराजस । अडतियानि सवछरानि... उपासक (स्मि )... साधिके सवछरे य च मे संघे याते ती अहं बा ढं च परकंते ती आहा ( । ) एतेना अंतरेणा जंबुदीपसि देवानं पीयस अमिसं देवा संतो मुनिस मिसं देवा कटा । परकमस इयं फले (1) नो च इयं महतेनाति व
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गुजर्रा शिलालेख'
गुजरी - जिला दतिया ( म०प्र०)
भाषा - प्राकृत / पालि,
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चकिये पापोतवे । खुदाकेण पी परकममीनेना धमं चरमीनेना पाने संयतेना विपुले पी स्वगे चकिये आराधयितवे । से एताये अठाये इयं सावणे। खुदाके च उडारे चा धमं चरंतू (यो ) गं युंजंतू । अंता पि जानंतू किंति च चिलथितिके धंम च.
सिति च एनं वा धमं चरं अति यो ( 1 ) इयं च सावन विवुथेन 200 (+) 50 (+) 6 (1)
देवों के प्रिय अशोक राजा का ( कहना है) - ढाई वर्ष उपासक रहा । ... मुझे संघ में गये को डेढ़ वर्ष हो गये ।
और अधिक पराक्रम किया। इस बीच जम्बूद्वीप में देवों के प्रिय ने जो अमिश्र देव थे वे देव मनुष्यों से मिश्र कर दिये। यह पराक्रम का फल है। यह न केवल महान् से ही
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प्राप्त होना सम्भव है। पराक्रम करने वाले और धर्माचरण करने वाले क्षुद्र 1. ए०३० 31, पृ० 205
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