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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 3. 4. 5. लिपि - ब्राह्मी, ई०पू० तृतीय शती 1. देवानं पियस असोकराजस । अडतियानि सवछरानि... उपासक (स्मि )... साधिके सवछरे य च मे संघे याते ती अहं बा ढं च परकंते ती आहा ( । ) एतेना अंतरेणा जंबुदीपसि देवानं पीयस अमिसं देवा संतो मुनिस मिसं देवा कटा । परकमस इयं फले (1) नो च इयं महतेनाति व 2. 1. www. kobatirth.org 2. गुजर्रा शिलालेख' गुजरी - जिला दतिया ( म०प्र०) भाषा - प्राकृत / पालि, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चकिये पापोतवे । खुदाकेण पी परकममीनेना धमं चरमीनेना पाने संयतेना विपुले पी स्वगे चकिये आराधयितवे । से एताये अठाये इयं सावणे। खुदाके च उडारे चा धमं चरंतू (यो ) गं युंजंतू । अंता पि जानंतू किंति च चिलथितिके धंम च. सिति च एनं वा धमं चरं अति यो ( 1 ) इयं च सावन विवुथेन 200 (+) 50 (+) 6 (1) देवों के प्रिय अशोक राजा का ( कहना है) - ढाई वर्ष उपासक रहा । ... मुझे संघ में गये को डेढ़ वर्ष हो गये । और अधिक पराक्रम किया। इस बीच जम्बूद्वीप में देवों के प्रिय ने जो अमिश्र देव थे वे देव मनुष्यों से मिश्र कर दिये। यह पराक्रम का फल है। यह न केवल महान् से ही 3. प्राप्त होना सम्भव है। पराक्रम करने वाले और धर्माचरण करने वाले क्षुद्र 1. ए०३० 31, पृ० 205 17 For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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