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पार्श्वनाथ के तीर्थकर भव का तुलनात्मक अध्ययन . माता, पिता, वंश और जन्म स्थान :
पार्श्वनाथ के माता पिता के नामों की सूचना आगम ग्रन्थों से भी प्राप्त हो जाती है। समवायांग में तथा आवश्यक नियुक्ति में पार्श्व के पिता का नाम “आससेण" तथा माता का नाम “वामा" बताया गया है। समवायांग का अनुसरण कर उत्तरकालीन अनेक ग्रन्थकारोंने पार्श्व के माता-पिताके यही नाम निर्दिष्ट किये हैं। किन्तु उत्तर पुराण में पाव के माता पिता का नाम क्रमशः ब्राह्मी और विश्वसेन बताया गया है । पुष्पदंत तथा वादिराज ने पार्श्व के पिता के नाम के बारे में उत्तर पुराण का ही अनुसरण किया है किन्तु वादिराज ने पार्श्व की माता का नाम ब्रह्मदत्ता बताया है । पद्मकीर्ति तथा रइधू ने पार्श्व के पिता के अश्वसेन नाम के स्थान में " हयसेन" नाम का उपयोग किया है। " अश्व" और "हय" समानार्थी शब्द हैं अतः नाम में तात्विक भेद नहीं प्रतीत होता है। ति. प. में पार्श्व की माता का नाम वर्मिला तथा पद्म चे. में वर्मा देवी बताया है। प्रतीत होता है ये दोनों नाम प्राकृत के वामा या वम्मा को संस्कृत रूप देने के प्रयत्न का फल है।
पार्श्व के वंश या कुल के संबंध में समवायांग में कोई सूचना नहीं है । कल्पसूत्र में भी इस संबंध में कोई निर्देश उपलब्ध नहीं । पार्श्व के वंश के सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख हमें तिलोय पण्णति में प्रथमबार प्राप्त होता है । उस ग्रन्थ में उनके वंश का नाम उग्रवंश बताया गया है । आवश्यक नियुक्ति के अनुसार पार्श्व काश्यप गोत्र के प्रतीत होते हैं क्योंकि इस ग्रन्थ में मुनिसुव्रत तथा अरिष्टनेमी तीर्थंकरों को गौतमवंश का कहकर शेष तीर्थंकरों को "कासव गुत्त" कहा है। उत्तर पुराण में भी पार्श्व के पिता को काश्यप गोत्र में उत्पन्न कहा गया है। वादिराजने पार्श्व के वंश का कोई निर्देश नहीं किया है। पुष्पदंत ने पार्श्व को उग्रवंशीय कहा है। देवभद्रसूरि ने आससेण को इक्ष्वाकुकुलोत्पन्न लिखा है। त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरितम् तथा श्वेताम्बर परम्परा में लिखे गए अन्य ग्रन्थों में पार्श्व के वंश का नाम “ इक्ष्वाकु" ही बताया गया है । पद्मकीर्ति ने पार्श्व के वंश का स्पष्ट कथन नहीं किया। उन्होंने तीर्थंकरों के वंश के संबंध में एक सामान्य कथन किया है कि कुछ तीर्थकर इक्ष्वाकुवंश में, कुछ, हरिवंश में और कुछ सोमवंश में उत्पन्न हुए थे। कौन किस वंश में हुआ था यह बताना पद्मकीर्ति ने आवश्यक नहीं मानौ ।
समवायांग से प्रारंभ कर आज तक के ग्रन्थ पार्श्व के जन्मस्थान के संबंध में एकमत हैं। सब मानते हैं कि उनका जन्म वाराणसी में हुआ था । यह नगरी अत्यन्त प्राचीन काल से भारत की एक प्रसिद्ध नगरी रही है। स्थानांग में स्पष्ट उल्लेख है कि वाराणसी जंबू द्वीप में जो दस राजधानियां हैं उनमें से एक है । जैन श्रुतांगों में यह वाणारसी रूप से ज्ञात है । यह परिवर्तन वर्णव्यत्यय का फल है । जन्म तिथि :
. कल्प सूत्र में पार्श्व का जन्म समय पौष कृष्णा दशमी की मध्यरात्रि दिया है। किन्तु तिलोय पण्णत्ति में वह समय पौष कृष्णा एकादशी निर्दिष्ट है । इन ग्रन्थों के अनुसार दिगम्बर श्वेताम्बर परंपराओं में यह भेद बना हुआ है। किन्तु दोनों इस पर एकमत हैं कि उनके जन्म का नक्षत्र विशाखा है। नाम :
पार्श्व का नाम पार्श्व क्यों रखा गया। इस प्रश्न का उत्तर उत्तरपुराण में यह दिया गया है कि इन्द्र ने बालक
१. स. २४७. २. आ. नि. ३८८. ३. उ. पु. ७३. ७५. ४. श्री. पा. ९.९५. ५. पद्म. च. २०. ५९. ६. आ. नि. ३८१. ७. उ. पु. ७३. ७५. ८. महापुराणु-९४. २२, २३. ९. सि. पा. पृ. १३५.१०. त्रि. च. ९३. १४.११. पा. च. १७. १३. १२. स. २५०. २५. १३. स्था. ९९५
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