Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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1. पारणा (आहार) के दिन सब दाताओं के यहाँ आकाश से उत्तम रत्नों
की वर्षा होती है, जिसमें अधिक से अधिक पाँच के धन से गुणित दश लाख प्रमाण अर्थात् साढ़े बारह करोड़ और कम से कम इसके हजारवें
भाग प्रमाण रत्न बरसते हैं। 2. दान विशुद्धि को विशेषता को प्रकट करने के निमित्त देव मेघों से
अन्तर्हित होते हुए रत्नवृष्टिपूर्वक दुन्दुभी बाजों को बजाते हैं। 3. उसी (आहार के) समय दान का उद्घोष अर्थात् जय-जय शब्द फैलता
4. सुगन्धित एवं शीतल वायु चलती हैं। 5. आकाश से दिव्य फूलों की वर्षा होती है। भ. पार्श्वनाथ का तप:
जिन नाथ (पार्श्व) संसार से पार उतारने वाले, त्रस एवं स्थाबर जीवों की रक्षा करने में तत्पर तथा इन्द्रियरूपी भुजङ्ग के विष दर्प का हरण करने वाले दुस्सह तप को करने लगे। तेरह प्रकार के चारित्र से मण्डित शरीर वे जिनेन्द्र अहर्निश गहनवन में रहते हुए तथा पन्द्रह प्रकार के प्रमाद से मुक्त होकर निरन्तर ध्यानाश्रित रहने लगे, फिर सोलह कषायों को क्षीण करके विहार करते हुए वे केलिवन पहुँचे और वहाँ हाथों को लटकाकर ध्यान करने लगे, मानो वहीं शाश्वतनगर अर्थात् मोक्ष का निवास हो। संबर देव द्वारा उपसर्ग :
भ. पार्श्वनाथ चार मास से शुद्धात्मा में लीन होकर जब तप के द्वारा अपने कर्मों की निजंरा कर रहे थे तभी कमठ का जीव संवर नामक देव अपनी भार्या के साथ आकाश मार्ग से कहीं जा रहा था कि उसका रथ वहीं रुक गया, तब उसने नीचे ध्यान में मग्न भ. पार्श्व को देखा और अपने पूर्व भव के वैर का जिसे जातिस्मरण हो गया है, ऐसे उस संवर देव ने भयंकर जल वर्षा, छोटे-मोटे पहाड़ों को समीप में गिराना इत्यादि उपसर्ग करना प्रारम्भ कर दिया किन्तु पार्श्व अपने ध्यान से विचलित नहीं हुए, सो ठीक ही है क्योंकि महापुरुष प्रतिकूल परिस्थितियों में भी संयम रखते हैं। इस प्रकार
80 रइधू : पास. 416