Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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देवों की ऊँचाई:
सौधर्म और ईशान स्वर्ग के देवों की ऊँचाई सात-सात हाध है। उसके बाद कमी का R : आधा-साधा हीन प्रपाण जानना चाहिए। सवार्थिसिद्धि में जो अहमिन्द्र देव हैं, उनके शरीर का प्रमाण एक हाथ है। देवों का अवधिज्ञान :
प्रथम दो कल्पों में निवास करने वाले देव प्रथम नरक पृथ्वी तक अपने ज्ञान से देख सकते हैं, उसके ऊपर के देव तीसरी नरक पृथ्वी में रहने वालों को देखते हैं। उसके ऊपर के चार स्वर्गों के सुरेश (शुक्र-महाशुक्र, शतार और सहस्रार के देव) सम्पूर्ण चौथे नरक तक देख सकते हैं। उन चार स्वर्गों के जो पवित्र देव हैं वे पाँचवी नरक भूमि को जानते हैं। नौ प्रकार के प्रैवेयक छठवीं नरक भूमि को और पुनः अनुदिशवासी अहमिन्द्र देव सातवीं नरक पृथ्वी को । जान सकते हैं। पाँच निर्मलतर अनुत्तर विमानों के देव सम्पूर्ण त्रिजगनाली (सनाड़ी) को जानते हैं। देवों का नीचे की ओर जाने वाला इस प्रकार का ज्ञान होता । इसी प्रकार ऊर्ध्व दिशा में भी केतु विमान तक विमानवासी देवों का ऐसा ही ज्ञान होता है।321 अप्सराओं की आयु एवं उत्पत्ति सीमा : ___ अप्सराओं की जघन्य आयु अर्धपल्य एवं उत्कृट आयु पचपन (55) पल्य प्राप्त होती है। उन देवियों की उत्पत्ति दो स्वर्ग तक कही गई है, जहाँ वे मनोवाञ्छित अतिशय सुखों का भोग करती हैं। 22 स्वर्गों में सख के प्रकार : __प्रथम दो कल्पों में कायसुख, उसके आगे दो कल्पों में स्पर्श सुख और आगे-आगे चार-चार द:खों का निग्रह करने वाले स्वर्गों में रूप, शब्द एवं मन का सुख होता है।323 देवों में विशेषता भेद :
तापस व्रत धारण करके जो शिव का ध्यान करते हैं और पञ्च तत्त्वों की भावनायें करते है, वे मरकर ज्योतिष्क देव होते हैं अथवा कोई-कोई व्यत्तर
321 रइधू : पाम. 5:25 322 वही 5/25,015-16 323 बही, घत्ता-96
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