Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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10. कुमुणि च सय भन्यौँ दट्ठ । पा. 3:41.7142 ___विषयरूपी भुजङ्ग से दष्ट होकर कुमुनि पतित हो जाता है। 11. पोएं नम :-7:42.
रवि के तेज से अन्धकार का भार नष्ट हो जाता है। 12. णसदसणेण दुग्गई दुहु तव-पहाइँ णं भग्गउ भणरुहु। पा. 3/9-8/42
सभ्यग्दर्शन से दुर्गति रूप दुख अथवा तप के प्रभाव से कामदेव भग्न हो
जाता हैं। 13. अप्पादंर्माण कम्महं गण (णासइ) पा. 319-9/42
आत्मदर्शन से कर्मसमूह नष्ट हो जाता है। 14. किं मिच्छाइट्ठिहु करइ भत्ति जो वि फेडई संसार - आंत। पा.3:12.-5:44
जो संसार के दुःख को नष्ट नहीं कर सकता, उस मिथ्यादृष्टि की भक्ति
क्यों करते हो? 15. जीव हंगस्थि ताण। पा. 3/13-846
संसार में जीवों के लिए मृत्यु से त्राण नहीं है। 16. आउखई गय एव जाहिं।। पा. 3/13-10146
सभी आयु के क्षय के बाद मृत्यु को प्राप्त होते ही हैं। 17, अंजलिंजलु व्व आउसु ढलए। पा. 3/14--2146
आयु अन्जली के जल के समान ढलती जाती हैं। 18. महवाधणु व्व धणु सुहु अथिरु जूवाधणु व्ब खाँण होइ परु। पा. 3:14
3/46 धन एवं सुख इन्द्रधनुष के समान अस्थिर हैं (वे) जुए के धन के समान
क्षणभर में दूसरे के हो जाते हैं। 19. कंतारइ तारायण तरला। पा. 3/14-5/46
स्त्री भोग तारागण के समान तरल हैं। 20. णवजोव्वणु णइपूरु व वरसइ। पा. 3/14-6/46
नवयौवन (वर्षा कालीन) नदी के पूर के समान क्षीण हो जाने वाला है। 21. लावण्णु वण्णु दिणि-दिणि ल्हसइ। पा. 3/14-6/46
सौन्दर्य और वर्ण प्रतिदिन हीयमान हैं।