Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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प्राचीन भारत की राजनैतिक प्रणाली की जानकारी भी 'पासणाहचरिउ' से होती है। राजा प्रजा का सदैव ध्यान रखता था। वह समस्त कलाओं में निष्णात होता था, तथा युद्ध क्षेत्र में धुरधर होता था। राजा का पुत्र ही राज्याधिकारी होता था। राज्य के सप्ताङ्ग की यहाँ चर्चा की गयी है। कार्य की सिद्धि के लिए पंचाङ्ग मन्त्र पर बल दिया गया है। दूत एवं सैन्य व्यवस्था के भी यहाँ उल्लेख प्राप्त होते हैं।
जैन धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों को सरल भाषा में समझने के लिए पासणाहचरिठ' बड़ा उपयोगी है। जैन आचार्यों एवं कवियों का उद्देश्य काव्यरचना के सहारे धार्मिक तत्त्वों का सुन्दर विवेचन रहा है। जिस प्रकार मिश्री-मिश्रित औषधि गुणकारी होती है, उसी प्रकार धर्म तत्त्व के उपदेश काव्य रूपी मिश्री में मिश्रित होकर और भी अधिक मधुर लगते हैं। रइधू की वर्णन शैली से यह बात परिलक्षित होती है। इस प्रकार अपने काव्य कौशल के माध्यम से रइधू ने भारतीय साहित्य के भण्डार की श्रीवृद्धि करने में अनुपम योग दिया