Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 262
________________ हे भगवान् कितने ही सन्तान प्राप्त करने के लिए, कितने ही धन प्राप्त करने के लिए तथा कितने ही मरणोत्तर काल में प्राप्त होने वाले स्वर्गादि की तृष्णा से तपश्चरण करते हैं, परन्तु आप जन्म और जरा की बाधा का परित्याग करने की इच्छा से इष्टानिष्ट पदार्थों में मध्यस्थ हो मन, वचन, काय की प्रवृत्ति को रोकते 'पासणाहचरिउ' में इस प्रकार के तप का आचरण करने वाले भगवान पार्श्व हैं, जिनके सामने कठिनाई के पहाड़ उपस्थित होते हैं फिर भी वे जरा भी विचलित नहीं होते हैं। फलतः संवर देव को विफल प्रयास होना पड़ता है। इसके विपरीत मन से कमठ तपस्या करता है। अपने भाई के प्रति उसका वैर शान्त नहीं होता है और जब उसका भाई पञ्चाग्नि तपस्या से तप्त उसे नमस्कार कर चरणों में सिर रखता है, तभी वह अपने भाई के सिर पर शिला का आघात करता है, जिससे वह (मरुभूति) मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। कमठ का जीव जन्म-जन्म में मरुभूति के जीव से बदला लेता है। इस प्रकार कमठ का तप आत्मप्राप्ति में कुछ भी सहायक नहीं होता है। __'पासणाहरिउ' में कर्म तथा उसके फल के प्रति अटूट आस्था व्यक्त को गयी हैं। बन्धन से मुक्ति कैसे हो, वह बतलाना रधू का अभीष्ट हैं। पावं पर किया गया संवर देव का उपसर्ग उनके पूर्वकृत कर्मों का पत्र फल था, जिसे तीर्थकर होने पर भी भोगना अनिवार्य था। पार्श्व की साधना बन्धन से मुक्त होने का उपाय थी। __काव्यशास्त्रीय दृष्टि से 'पासणाहचरिउ' एक सफल महाकाव्य है। महाकाव्य में जिन गुणों का होना आवश्यक है, उनका सन्निवेश 'पासणाहचरिउ' में हुआ हैं। कवि ने काव्य की शोभा बढ़ाने के लिए अलङ्कारों का प्रयोग किया है। उनके अलङ्कार प्रयोग स्वाभाविक हैं, उससे काव्य बोझिल नहीं हुआ है। रइधू ने 'पासणाहरिइ' में नौ छन्दों का प्रयोग किया है। अधिकांशतः पद्धडिया छन्द का प्रयोग हुआ है। गुणों की दृष्टि से प्रसाद गुण की बहुतायत है, किन्तु ओज एवं माधुर्य गुण का प्रयोग भी यथास्थान किया गया है। पासणाहचरिउ के आन्तरिक अनुशीलन से उसमें प्रतिपादित सामाजिक, राजनैतिक तथा धार्मिक परिस्थिति का भी पता चलता है। यहाँ-सुपुत्र कुपुत्र, अच्छा भाई-बुरा भाई, सभी के उदाहरण प्राप्त हैं। विभिन्न प्रकार की जातियों एवं वर्गों से बहाँ परिचय होता है। अनेक प्रकार के व्यसन तथा उसके दुष्परिणामों का वर्णन किया गया है। इससे समाज के परिष्कार की शिक्षा प्राप्त होती है। PASTESTMETESexestesteSTS 238 ASXXSYemestesexeSXSI

Loading...

Page Navigation
1 ... 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275