Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 255
________________ ओला घोर बड़ा निशि भोजन, बहुबीजा बेंगन संधान । बड़ पीपर ऊमर कठूमर, पाकर फल जो होय सुजान ॥ कन्दमूल माटी विष आमिष, मधु भाखन अरु मदिरापान । फल अति तुच्छ तुषार चलितरस, ये जिनमत बाईस बखान 1962 पाँच उदुम्बर363 : ऊमर, कठूमर, बड़, पीपर और पाकर, ये पाँच उदुम्बर फल कहलाते हैं। जिन वृक्षों में से दूध निकलता है, उन्हें उदुम्बर फल कहते हैं। इनके फलों को तोड़कर देखा जाये तो उनमें से जीव निकलते हैं। उनका सेवन करने से इन जीवों की हिंसा हो जाती है, अत: इन्हें त्याग देना चाहिए964 ज्ञान365 : जिसके द्वारा जीव त्रिकाल विषयक अर्थात् भूत, भविष्य और वर्तमान काल, समस्त द्रव्य और उनके गुण तथा पर्यायों (अवस्थाओं) को जाने, उसे ज्ञान कहते हैं।366 यह ज्ञान मति, श्रुत, अवधि, मन: पर्यय और केवल के भेद से पाँच प्रकार का है।367 इनमें प्रारम्भ के दो परोक्ष ज्ञान और शेष तीन प्रत्यक्ष ज्ञान हैं।368 अष्टकर्म36 : अष्टकर्म निम्नलिखित हैं370 1, ज्ञानावरण, 2. दर्शनावरण, 3. वेदनीय, 4. मोहनीय, 5, आयु, 6. नाम, 7. गोत्र और 8. अन्तराय। ज्ञानावरण: जो ज्ञान को आवृत करे या जिसके द्वारा ज्ञान का आवरण किया जाय, वह ज्ञानावरण है। 362 श्री अभय जिनवाणी संग्रहः लेखिका आर्थिका, अभयमती जी, 1230 363 पास. 514 364 श्रावक धर्म : लेखक डॉ. रमेश चन्द जैन, पृ. 12 365 पास, 2:4 366 जाणइ तिकालविसए दब्धगुणे पज्जए ये बहुभेदे। पच्क्स च परोक्खं अगेण गाणेति गं बोति ॥ गोम्मटसार जीकांड, गाथा- 298 367 "मतिश्रुतात्रधिमनः पर्यय केवलानिज्ञानम्" । 368 "आद्ये परोक्षम् प्रत्यक्षमन्यत्' - तलवार्थसूत्र 1/11 369 पास.71 370 द्र. तत्वार्थसूत्र 814

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