Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 258
________________ उत्तम त्याग: चार प्रकार का दान करना व राग-द्वेष आदि का त्याग करना; उत्तम त्याग कहलाता है। उत्तम आकिंचन्य : अन्तरङ्ग व बहिरंग परिग्रह का त्याग करके आत्म स्वरूप से भिन्न शरीरादिक में ममत्वरूप परिणामों का अभाव होना, उत्तम आकिंचन्य है। उत्तम ब्रह्मचर्य : स्त्रीमात्र का त्याग करके, शील से युक्त हो, अपने आत्मस्वरूप में रमण करना उत्तम ब्रह्मचर्य है। उपर्युक्त दश धर्मों का पालन करने से वीतरागता की प्राप्ति होती है। जैनेतर धार्मिक मान्यतायेंतावस (तापस )374 : 'पासणाहचरिउ' में जैनधर्म की मान्यताओं के विपरीत शैव तापसों का भी उल्लेख मिलता है। जब कमठ व्यभिचारी होने के कारण जंगल में पहुँचा तो उसे वहाँ एक तापस समूह दिखायी पड़ा जो इस प्रकार था कोई तापस शिव-शिव की घोषणा कर रहा था, कोई ऊँचे हाथ करके तप कर रहा था, कोई भभूत से अपने गात्र की रचा कर रहा था, कोई पंचाग्नि के ताप से तप्त हो रहा था, कोई अक्षमाला को लेकर जाप कर रहा था, कोई जङ्गल का श्रेष्ठ वल्कल वस्त्र धारण किए हुए था, कोई सन्ध्यावन्दन करता हुआ दिखाई दे रहा था।375 ने तापस शरीर पर भस्म376 और सिर पर जटायें धारण करते थे377 वे तीव्र तप करते थे, पञ्चाग्नि तप के व्रती थे, केवल फल, कन्द एवं मूल का भक्षण करते थे, वे अपने पुत्र-कला एवं घरबार को छोड़े हुए थे। 374 रइधू : पास. 3:11,6:516 375 वहीं 6/6 376 वही, घत्ता-112 377 वही, 6/8 378 बही,3111 sheshsxesasesamesesy 234 bastushashesnestusxesy

Loading...

Page Navigation
1 ... 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275