Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 257
________________ दशलक्षण धर्म372 : दशलक्षणों से युक्त धर्म दशलक्षण धर्म कहलाता है। धर्म के दशलक्षण उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिञ्चन और ब्रह्मचर्य कहे गये हैं।373 उत्तम क्षमा: दुष्ट लोगों के दुर्वचनों से तिरस्कार,हास्य, ताड़न-मारण आदि क्रोध की उत्पत्ति के कारण होने पर परिणामों में मलिनता नहीं आना, प्राणीमात्र के प्रति क्षमा भाव, रखना; उत्तम क्षमा कहलाती है। उत्तम मार्दव : __उत्तम जाति, कुल, रूप, ज्ञान, ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा, बल, तप आदि के विद्यमान होते हुए भी मान (घमण्ड) नहीं करना उत्तम मार्दव कहलाता है। उत्तम आर्जव: ___ मन, वचन व काय की कुटिलता को छोड़कर परिणामों में सरलता बनाए रखना; उत्तम आर्जव कहलाता है। उत्तम शौच : लोभ, अभिलाषा आदि के अभाव होने पर परिणामों में निर्मलता या शुचिता होना शौच है। उत्तम सत्य : सुन्दर, कटुता से रहित, अहिंसक, प्रशस्त वचन बोलना उत्तम सत्य है। उत्तम संयम: छह काय के जीवों की रक्षा करना और पाँचों इन्द्रियों तथा मन को वश में रखना; उत्तम संयम कहलाता है। उत्तम तप: अनशन, सामायिक आदि बारह प्रकार का तप करना; उत्तम तप कहलाता 372 रइधू : पास. 2/15,513 373 "उत्तमक्षमामास्वार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागकिंचन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः।" तत्त्वार्थसूत्र 916

Loading...

Page Navigation
1 ... 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275