Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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Wakakata
शुक्र - महा शुक्र तथा शतार एवं सहस्रार में क्रमश: एक- एक आनत- प्राणत, आरण और अच्युत में छह-छह तथा ग्रैवेयकों में नौ-नौ पटल होते हैं। नौ अनुत्तर तथा सर्वार्थसिद्धि में क्रमश: एक एक पटल। इस प्रकार ये त्रेसठ पटल होते हैं 17
स्वर्गों की विमान संख्या :
सौधर्म स्वर्ग में बत्तीस लाख विमान, ईशान स्वर्ग में अट्ठाईस लाख गृह विमान 318 सनत्कुमार स्वर्ग में बारह लाख विमान, माहेन्द्र में आठ लाख विमान, ब्रह्म एवं ब्रह्मोत्तर में चार लाख, लान्तव एवं कापिष्ठ में पचास हजार विमान, शुक्र एवं महा शुक्र में चालीस हजार विमान, शतार एवं सहस्रार में छह सहस्र विमान और आनत, प्राणत, आरण और अच्युत स्वर्ग में क्रमश: सातसात सौ विमान हैं।
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अधस्तन तीनों ग्रैवेयकों में एक सौ ग्यारह विमान, मध्यम ग्रैवेयक में एक सौ साल विमान, ऊपरी ग्रैवेयक में इकानवे विमान कहे गये हैं। नौ अनुदिशों में नौ-नौ नभगामी विमान और नौ अनुत्तरों में पाँच-पाँच विमान कहे गये हैं। ये विमान इन्द्रक, श्रेणीबद्ध एवं कुसुम प्रकीर्णक नाम के तीन भेद वाले हैं। 319 सोलह स्वर्गों के देवों की आयु :
सौधर्म और ईशान स्वर्ग के देवों की आयु का प्रमाण दो सागर, सनत्कुमार एवं माहेन्द्र स्वर्ग के देवों की सात सागर, 320 ब्रह्म ब्रह्मोत्तर स्वर्ग के देवों की दस सागर, लान्तव कापिष्ठ स्वर्ग के देवों की चौदह सागर, शुक्र- महाशुक्र के देवों की सोलह सागर, शतार सहस्त्रार स्वर्ग के देवों की अठारह सागर आनत - प्राणत स्वर्ग के देवों की बीस सागर, आरण और अच्युत स्वर्ग के देवों की बाईस सागर प्रमाण आयु होती हैं।
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सर्वार्थसिद्धि में तैंतीस सागर की आयु होती है और वहाँ के निवासी देव अहर्निश सुख-समृद्धि का भोग करते हैं।
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प्रथम स्वर्ग की जो उत्कृष्ट आयु होती है, वहीं उसके ऊपर वाले स्वर्ग की जघन्य आयु होती है।
317 रइधू पास 5/23 318 बही, यत्ता-- 94 319 वही 5/24 320 वही, धत्ता - 95
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