Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 251
________________ ज्ञानोपयोग: मति, श्रतु, अवधि, मनः पर्यय और केवलज्ञान तथा कुमति, कुश्रुत, कुअवधि, ये आठ भेद दर्शनोपयोग के हैं। 31 दर्शनोपयोग : चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन; ये चार भेद दर्शनोपयो के हैं जीव के भेद: ___ जीव के दो भेद हैं-संसारी और मुक्त।333 संसारी जीव के समनस्क अर्थात् जो मन सहित हैं और दूसरे अमनस्क अर्थात् जो मन से रहित हैं, ये दो भेद हैं। 334इन्हें क्रमशः सैनी और असैनी भी कहते हैं। संसारी जीव त्रस और स्थावर के भेद से भी दो प्रकार के हैं।335 त्रस जीव: जिनके त्रस नामकर्म का उदय है, वे बस कहलाते हैं। द्वीन्द्रिय से लेकर अयोग केवली तक के सब जीव वस हैं।336 स्थावर जीव : जिनके स्थावर नामकर्म का उदय है, वे स्थावर जीव कहलाते हैं। ये एकेन्द्रिय होते हैं। स्थावर जीव-पृथ्वीकाबिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक के भेद से पाँच प्रकार के होते हैं।337 भव्य और अभव्य जीव : जीवों के भव्य और अभव्य ये दो भेद और भी हैं। 331 पूज्यवाद : सर्वार्थ सिद्धि. संस्कृत टोका 29 332 वहीं 219 333 "संसारिणो मुक्तारुष''-तत्त्वार्थसत्र 2:10 334 "समनस्कामनस्काः " वही 2/11 335 वही 2/12 336 "दीन्द्रियादयस्त्रसाः ॥ वहीं 2:14 337 "पृथिव्यलेजोवाधुबनस्पतय: स्थावररा:" तत्त्वार्थसूज 2:13 Postxmesasrusiashashusiasj 227 keshrastastushasxese

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