Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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गति में भी उत्पन्न होते हैं। जो उत्तम श्रावक व्रत धारण करते हैं। जो श्रेष्ठ नारी आर्यिका व्रत धारण कर मरती हैं, वह सोलहवें स्वर्ग में उत्पन्न होती हैं। मुनि को छोड़कर उसके ऊपर अन्य कोई नहीं जाता। वे मुनि यथाजात लिङ्ग धारण करके, शरीर के भोगों और परिग्रह का त्याग करके, अभिमान, कषाय और दोषों से मुक्त होकर ऊपर-ऊपर के स्वर्गों में जाते हैं। इन स्वर्गों में क्रम-क्रम से देव हीन मान वाले होते हैं।
स्थिति, प्रभाव, सुख, दीप्ति तथा लेश्या तथा इन्द्रियों की विशुद्धि एवं आयु, ये कपर की ओर अधिक-अधिक हैं।324 सिद्धक्षेत्र अथवा मोक्ष का वर्णन :
सर्वार्थसिद्धि के ऊपर बारह योजन प्रमाण पवित्र सिद्धक्षेत्र है। दक्षिण-उत्तर में वह सात राजू प्रमाण तथा पूर्व-पश्चिम में एक राजू चौड़ा सुशोभित है! उसके मध्य में चन्द्र महल के समान गोल, सीधा, छत्राकार एवं पवित्र आठ योजन मोटा दैदीप्यमान क्षेत्र है, जिसका विस्तार पैंतालीस लाख योजन कहा गया है। उसके ऊपर सिद्धों का निवास है, उसमें सिद्ध निवास करते हैं, जो नित्य, अरूपी एवं सम्यक्त्व प्रमुख गुणों के धारी तथा अष्ट ऋद्धियों से युक्त, अमूर्तिक, विवर्ण (रूप से रहित), ज्ञान के पिण्डस्वरूप, अष्टकर्म-रहित और अखण्ड सुखों के धारी होते हैं। परमानन्दामृत से निरन्तर तृप्त, श्रेष्ठ अनन्त गुणों के आकर एवं आत्मरस से सिक्त होते हैं। सभी सिद्ध तनु वातवलय के अन्त में निवास करते हैं, इसके ऊपर वे नहीं जाते। कोई सिद्ध समूह वहाँ पर्यङ्कासन में और कोई सिद्ध समूह कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित हैं। अन्तिम शरीर से किञ्चिद् हीन उत्पत्ति जरा एवं मरण के दुख.25 से रहित ये सिद्ध त्रिजग में सारभूत हैं तथा भव्यजनों के लिए उत्तम बोध प्रदान करते हैं।925 काल:
समस्त द्रव्यों के उत्पादादि रूप परिणमन में सहायक "कालद्रव्य" होता है। इसका लक्षण वर्तना है। यह स्वयं परिवर्तन करते हुए अन्य द्रव्यों के परिवर्तन में सहायक होता है। काल द्रव्य के दो भेद हैं-1-निश्चयकाल और 2-व्यवहार
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324 रइथू : पास. 5/26 325 वही 5/26 326 वहीं, घत्ता-97 Passisxesyaneshastases 225 sesxesxesesxexxsess